पूर्व आईएएस अधिकारी सीवी आनंद बोस को जब पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया गया था तब इसे लेकर कई तरह के सवाल उठे थे। राज्यपाल बनने के बाद करीब आठ-नौ महीने तक वे राज्य सरकार के प्रति पूरा सद्भाव दिखाते रहे। तब ऐसा लगा कि शायद केंद्र और भाजपा को समझ में आया है कि राज्य की राजनीतिक लड़ाई राजभवन से नहीं लड़ी जा सकती है। लेकिन पिछले दो-तीन महीने में राज्यपाल का असली रंग सामने आया है। वे अब राज्य सरकार के खिलाफ उसी तरह मोर्चा खोले हुए हैं, जैसे उनके पूर्ववर्ती जगदीप धनखड़ ने खोला था। राजभवन से राज्य में समानांतर सरकार चलाने की कोशिश हो रही है। राज्यपाल अपने आप उन सभी विश्वविद्यालयों के कार्यकारी कुलपति बन गए, जहां कुलपति का पद खाली थी। उन्होंने विश्वविद्यालयों को राजभवन के आदेश से काम करने को भी कहा। राज्य में कानून व्यवस्था को लेकर भी उन्होंने बड़े तीखे बयान दिए हैं।
राज्यपाल ने कहा है कि राज्य में उन्होंने अपनी आंखों से खून से राजनीतिक होली होते देखा है। उन्होंने कहा कि हत्या हो रही है, बलात्कार हो रहे हैं और खून की होली खेली जा रही है। ऐसा लग रहा है कि अगले साल के चुनाव से पहले वे राज्य में ऐसी स्थिति पैदा होने का नैरेटिव बना रहे हैं, जिससे या तो राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए या केंद्रीय बलों की बड़ी संख्या में तैनाती हो। उनके इस रंग को देख कर तृणमूल कांग्रेस के साथ उनका विवाद पिछले राज्यपाल के मुकाबले बहुत बढ़ गया है। आधी रात को स्ट्राइक करने के बोस के बयान के बाद राज्य के शिक्षा मंत्री ब्रत्या बसु ने उनके पिशाच कह कह संबोधित किया। बहरहाल, जगदीप धनखड़ के समय हुई गलती से सबक लेकर बंगाली राज्यपाल नियुक्त किया गया है। पहले धनखड़ राज्य सरकार पर हमला करते थे तो ममता बनर्जी को बाहरी और भीतरी का नैरेटिव बनाने में मदद मिल जाती थी। अब एक बंगाली राज्यपाल सवाल उठा रहे हैं तो बाहरी और भीतरी का नैरेटिव नहीं बन पा रहा है।