पश्चिम बंगाल में भाजपा चाहे जितनी मजबूत हो गई हो, ममता बनर्जी उसको कुछ नहीं समझती हैं। भाजपा के मुख्य विपक्षी होने के बावजूद जैसी लड़ाई भाजपा से उनकी नहीं चल रही है उससे गंभीर लड़ाई अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी से चल रही है। तृणमूल कांग्रेस ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी के सहयोगियों के बीच बंटी है तो ममता बनर्जी की सरकार भी ममता और अभिषेक समर्थकों में बंटी है। दोनों के समर्थकों की पहचान सबको पता है और दोनों खेमे एक दूसरे पर हमला करते रहते हैं। पिछले दिनों अभिषेक के करीबी अणुब्रत मंडल के जेल से निकलने के बाद बीरभूम में कलेक्टर ने फिर से उनको अपना आधार हासिल करने में मदद की तो खबर है कि ममता बनर्जी ने कलेक्टर को बहुत हड़काया।
इस तरह की अनेक खबरें हैं। आरजी कर अस्पताल में जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना के बाद प्रदर्शनों में हिस्सा लेने वाली सांस्कृतिक हस्तियों का बहिष्कार चल रहा है। लेकिन अभिषेक इसके पक्ष में नहीं हैं तो उसमें भी पार्टी के आधिकारिक प्रवक्ता की ओर से अभिषेक के उलट राय जाहिर की गई है। अब सवाल है कि अभिषेक पार्टी में सचमुच दूसरे नंबर के व्यक्ति हैं। फिर भी ममता क्यों उनको उस रूप में काम नहीं करने देना चाहती है? इसके पीछे दो थ्योरी बताई जा रही है। एक तो यह है कि ममता अपनी पार्टी के बुजुर्ग नेताओं को खुश रखना चाहती है इसलिए अभिषेक को बीच बीच में नीचा दिखाने का दांव चला जाता है। दूसरी थ्योरी यह है कि बड़ी होशियारी से ममता ने अपनी पार्टी और सरकार में ही अपना विरोधी खड़ा होने का मैसेज बनवाया है। यानी पक्ष और विपक्ष दोनों का स्पेस तृणमूल के पास ही है। इससे भाजपा की राजनीति कमजोर होती है।