देश की चार वामपंथी पार्टियों ने साझा मीटिंग करके लखनऊ में एक सभा की है। सीपीआई, सीपीएम, सीपीआई एमएल और फॉरवर्ड ब्लॉक के नेता मिले और उन्होंने अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की रणनीति पर चर्चा की। उसके बाद एक सभा भी हुई, जिसमें सभी नेताओं ने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के साथ मिल कर लड़ने और भाजपा को हराने का संकल्प किया। लेकिन इन चारों पार्टियों की राजनीति किसी को समझ में नहीं आ रही है। असल में कम्युनिस्ट पार्टियों का असर बहुत सीमित क्षेत्र में रह गया है। अभी तक इन पार्टियों की जो रणनीति है उसके मुताबिक, जहां इनका असर है वहां इनको तालमेल करके नहीं लड़ना है। वहां ये पार्टियां ‘इंडिया’ के साथ नहीं रहेंगी और जहां असर नहीं है वहां विपक्षी गठबंधन में शामिल होकर लड़ने के लिए सीटें चाहिए!
कम्युनिस्ट पार्टियों ने साफ कर दिया है कि वे केरल में गठबंधन नहीं करेंगी क्योंकि वहां पिछले सात साल से उनकी सरकार चल रही है और उनका मजबूत असर है। वहां कांग्रेस से सीधा मुकाबला लेफ्ट का है। इसी तरह त्रिपुरा में भी सीपीएम मुख्य विपक्षी पार्टी है और वहां भी उसे तालमेल नहीं करना है। वहां की दो सीटों पर वह अकेले लड़ना चाहती है। कांग्रेस से तालमेल की बात वह कर भी सकती है लेकिन तृणमूल के साथ तालमेल नहीं करना है। पश्चिम बंगाल में, जहां लेफ्ट ने साढ़े तीन दशक तक लगातार राज किया था वहां भी उसे तालमेल नहीं करना है। इसके अलावा बाकी किसी राज्य में उसका कोई आधार नहीं है। फिर भी उसे बिहार में सीट चाहिए, महाराष्ट्र में सीट चाहिए, तेलंगाना में भी सीट चाहिए और झारखंड में भी एक सीट चाहिए। वह दूसरी विपक्षी पार्टियों के असर वाले सभी राज्यों में तालमेल करके लड़ना चाहती है।