क्या चुनावी बॉन्ड का कानूनी मामला सुलझ गया? सुप्रीम कोर्ट ने इसे अवैध घोषित कर दिया और इस पर रोक लगा दी तो आगे क्या? एक बड़ा वर्ग है, जो मान रहा है कि कानूनी पक्ष निपट गया है और राजनीतिक फैसला आने वाला है। यानी लोकसभा चुनाव में विपक्षी पार्टियों ने इसे मुद्दा बनाया है और देखना है कि देश की जनता इस पर क्या प्रतिक्रिया देती है। अगर इस बार के चुनाव में भाजपा को फिर से जीत मिलती है तो इसका मतलब होगा की देश की जनता ने विपक्ष के आरोपों को खारिज कर दिया। जनता ने मान लिया कि भ्रष्टाचार नहीं हुआ था। ध्यान रहे पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और राहुल गांधी ने राफेल लड़ाकू विमान खरीद में गड़बड़ी का मुद्दा उठाया था और ‘चौकीदार चोर है’ के नारे पर चुनाव लड़ा था। लेकिन चुनाव में भाजपा जीत गई और उसके बाद फिर राहुल गांधी कभी यह नारा लगाते नहीं दिखे और न राफेल का मुद्दा उठाया।
तभी यह संभव है कि अगर भाजपा फिर से चुनाव जीतती है तो चुनावी बॉन्ड का मामला भी ठंडे बस्ते में चला जाए। लेकिन एक दूसरा तबका है, जो इस पर राजनीतिक जनादेश से ज्यादा कानूनी कार्रवाई में यकीन करता है। आखिर चुनावी बॉन्ड का मामला पिछले लोकसभा चुनाव के समय भी था लेकिन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स या प्रशांत भूषण या जया ठाकुर ने हार नहीं मानी। उनके प्रयासों का नतीजा यह है कि कानून बनने के सात साल के बाद इस पर फैसला आया। सो, यह वर्ग चुनाव नतीजों के बाद भी इसका पीछा नहीं छोड़ने वाला है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई होगी और अदालत की ओर से अवैध ठहराए गए कानून की जांच की मांग होगी। प्रशांत भूषण ने ऑलरेडी इसकी मांग कर दी है। उन्होंने कहा है कि विशेष जांच दल यानी एसआईटी बना कर अदालत की निगरानी में इसकी जांच होनी चाहिए। एक तरफ एसआईटी बना कर जांच की मांग है तो दूसरी ओर वकील बिरादरी से लेकर कारोबारी समूहों तक का दबाव है कि यह मामला यही पर समाप्त हो क्योंकि इसकी और परतें खुलीं तो भाजपा और उसकी सरकार को जो नुकसान होगा वह तो होगा ही कारोबारियों को भी बड़ा नुकसान हो सकता है।