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कश्मीर में क्या करेगी सरकार

civil war

जम्मू कश्मीर की वर्तमान अशांति क्या राज्य में हुए विधानसभा चुनावों की चिंता से हो रही है या इससे कोई नया ट्रेंड निकल रहा है? कश्मीर में पिछले करीब पांच महीने से आतंकवादी हमलों में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है। लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद से ही ऐसी स्थिति है। हालांकि सितंबर और अक्टूबर में हुए विधानसभा चुनावों के बाद इन हमलों में तेजी आई है। एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले करीब पांच महीने में यानी लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद से कश्मीर में कम से कम 35 हमले हुए हैं। इन हमलों में सुरक्षा बलों के 37 जवान शहीद हुए हैं और 25 आम नागरिक मारे गए हैं। इसके अलावा 50 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं।

जम्मू कश्मीर में सुरक्षा बलों पर भी हमले में बढ़ोतरी हुई है तो गैर कश्मीरियों पर लक्षित हमले भी बढ़े हैं। दिवाली के त्योहार के दौरान भी शुक्रवार, एक नवंबर को प्रवासी मजदूरों पर हमला हुआ। एक पखवाड़े में यह पांचवां हमला था। इससे पहले गुलमर्ग में सेना की गाड़ियों पर हमला हुआ था, जिसमें तीन जवान शहीद हुए थे और दो कुल मारे गए थे। बाद में सुरक्षा बलों की मुठभेड़ में सभी आतंकवादी मारे गए। सोचें, एक तरफ शांतिपूर्ण और लगभग निष्पक्ष चुनाव हुए हैं। लोकतांत्रिक सरकार बन गई है और पूर्ण राज्य का दर्जा भी बहाल होने वाला है।

तो दूसरी ओर आतंकवादियो के हमले बढ़ गए हैं। अब फारूक अब्दुल्ला भी कहने लगे हैं कि पाकिस्तान ये हमले करा रहा है। उन्होंने कहा कि अगर पाकिस्तान को लगता है कि इस तरह कश्मीर उसका हो जाएगा तो यह संभव नहीं है। सवाल है कि पाकिस्तान का पहलू इतना खुल कर सामने आने के बाद केंद्र सरकार क्या करेगी? पुलिस राज्य की उमर अब्दुल्ला सरकार के हाथ में रहेगी तो उसका क्या असर होगा? क्या राज्य में कोई नई राजनीतिक, कूटनीतिक या सामरिक पहल होने की संभावना बन रही है?

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