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आधार का विवाद क्या सुलझ जाएगा

West Bengal, April 26 (ANI): A voter shows her ID card before casting vote to a polling booth during the 7th phases of the West Bengal assembly election, in Kolkata on Monday. (ANI Photo)

सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। सर्वोच्च अदालत ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर में मतदाता के सत्यापन के लिए आधार को एक दस्तावेज के तौर पर स्वीकार करने का आदेश दिया। चुनाव आयोग ने हालांकि बिहार का संदर्भ देते हुए कहा कि वहां 7.24 करोड़ मतदाताओं के नाम मसौदा मतदाता सूची में शामिल हैं और उनमें से 99 फीसदी से ज्यादा ने चुनाव आयोग की ओर से प्रस्तावित जरूरी 11 दस्तावेजों में से कोई न कोई दस्तावेज जमा करा दिया है। इसलिए अब आधार को 12वें दस्तावेज की मान्यता देने का कोई व्यावहारिक फायदा नहीं होगा। लेकिन यह मामला इतना आसान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐसे समय में आया है जब चुनाव आयोग पूरे देश में एसआईआर कराने जा रहा है। पूरे देश में एसआईआर पर विचार करने के लिए चुनाव आयोग ने सभी राज्यों के मुख्य चुनाव अधिकारियों की बैठक 10 सितंबर को बुलाई है।

राज्यों के मुख्य चुनाव अधिकारियों की बैठक में मुख्य रूप से इस बात पर चर्चा होनी थी कि दूसरे राज्यों में मतदाताओं को सत्यापन के लिए आधार को स्वीकार किया जाए या नहीं। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद चुनाव आयोग को आधार स्वीकार करना होगा। सुनवाई के दौरान ही अदालत ने इस बात पर नाराजगी जताई थी कि जब उसने पहले कहा था कि क्यों आधार स्वीकार नहीं किया गया और जिन बूथ लेवल अधिकारियों ने आधार स्वीकार किए उनको चुनाव आयोग ने कारण बताओ नोटिस क्यों जारी किया? चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने तो कह दिया था कि उनके पास नोटिस नहीं है लेकिन याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने कारण बताओ नोटिस की कॉपी अभी अदालत को दी है। अगली सुनवाई में यह मुद्दा उठेगा। तभी देश भर में एसआईआर कराने में आयोग को आधार स्वीकार करने की बाध्यता होगी।

परंतु सवाल है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश से आधार का विवाद सुलझ जाएगा? इसकी गुंजाइश कम है क्योंकि सर्वोच्च अदालत ने भी कहा है कि आधार नागरिकता के सत्यापन का दस्तावेज नहीं है। वह आवास प्रमाणपत्र के तौर पर स्वीकार किया जाएगा। इसमें संदेह नहीं है कि आवास प्रमाणपत्र मतदाता बनने के लिए जरूरी दस्तावेज है। लेकिन मतदाता बनने के लिए भारत का नागरिक होना भी उतना ही जरूरी है। यह सही है कि बीएलओ के स्तर पर नागरिकता की जांच नहीं हो सकती है। लेकिन बीएलए अगर किसी की नागरिकता संदिग्ध बता देगा तो उसकी जांच होगी। इसका मतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी जमीनी स्तर पर विवाद की गुंजाइश है। क्योंकि सत्यापन के दस्तावेज के तौर पर आधार स्वीकार करते हुए बीएलए उसको संदिग्ध बता सकता है। ध्यान रहे पूरे देश में करोड़ों की संख्या में फर्जी आधार बने हैं। बिहार के कई जिलों में आबादी के 25 फीसदी से ज्यादा तक आधार बने हैं। ऐसे में अगर बीएलए किसी मतदाता के आधार पर संदेह जता दे तो उसे यह प्रमाणित करना होगा कि उसका आधार फर्जी नहीं है। आधार फर्जी नहीं है यह साबित करने के लिए चुनाव आयोग के बताए 11 दस्तावेजों में से कोई एक दस्तावेज पेश करना होगा। ध्यान रहे करोड़ों लोगों के आधार विधायक और पार्षद की चिट्ठी पर बने हैं। इसलिए आधार  के सत्यापन के लिए विधायक या पार्षद की चिट्ठी पेश करने से काम नहीं चलेगा। इसका मतलब है कि आधार की समस्या बनी रहेगी। पहले सीधे आधार को खारिज किया गया था और अब घुमा कर खारिज किया जा सकता है।

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