एक तरफ भाजपा के खिलाफ विपक्षी पार्टियों के गठबंधन का प्रयास पटरी से उतरा हुआ है तो दूसरी ओर देश की सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी सीपीएम ने कहा है कि वह राष्ट्रीय स्तर पर कोई गठबंधन नहीं करेगी। उसने राज्यों में अलग अलग गठबंधन की नीति बनाई है। उसने यह भी साफ कर दिया है कि कांग्रेस के साथ कोई राष्ट्रीय गठबंधन नहीं होगा। इसका मतलब है कि सीपीएम पूरे देश के स्तर पर बनने वाले किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं होगी। यह विपक्ष का साझा मोर्चा बनाने के प्रयासों के लिए झटका है। ध्यान रहे कम्युनिस्ट पार्टियों का आधार हर राज्य में है और किसी जमाने में कम्युनिस्ट नेता ही विपक्षी गठबंधन की धुरी होते थे। अब भी सीताराम येचुरी सहमति बनाने वाला चेहरा हो सकते हैं। लेकिन ऐसा लग रहा है कि उनकी पार्टी ने उनको ज्यादा तरजीह नहीं दी है।
केरल के कन्नूर में सीपीएम की 23वीं कांग्रेस हुई है, जिसमें यह प्रस्ताव पास किया गया कि पार्टी कांग्रेस के साथ कोई राष्ट्रीय गठबंधन नहीं बनाएगी। यह प्रस्ताव भी मंजूर किया गया कि पार्टी भाजपा को हराने के लिए राज्यवार गठबंधन करेगी। अब भी सीपीएम और सीपीआई दोनों इसी नीति पर चल रहे हैं। जैसे तमिलनाडु में दोनों का गठबंधन डीएमके से है तो बिहार में राष्ट्रीय जनता दल से। ऐसा लग रहा है कि सीपीएम ने हर राज्य की क्षेत्रीय पार्टी के साथ गठबंधन की रणनीति बनाई है। उसमें दूसरी पार्टियां भी हो सकती हैं। इसका यह भी मतलब है कि एक बड़ा गठबंधन बनाने की बजाय विपक्ष के छोटे छोटे गठबंधन बनेंगे। सीपीएम का मानना है कि यह मॉडल ज्यादा सफल होगा। इससे यह मैसेज भी नहीं बनेगा कि सारी विपक्षी पार्टियां मिल कर भाजपा को हराने का प्रयास कर रही हैं। य़ह मैसेज बनने से भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण होता है।