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अहमद पटेल के बिना कांग्रेस!

ByNI Political,
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अहमद पटेल के बिना कांग्रेस!
जिस तरह से गांधी परिवार के बिना कांग्रेस की कल्पना नहीं की जा सकती है, कुछ कुछ उसी तरह से अहमद पटेल के बगैर भी कांग्रेस की कल्पना मुश्किल है। पिछले तीन दशक से ज्यादा समय से धीरे धीरे पार्टी पूरी तरह से उनके ऊपर निर्भर थी। पार्टी की चुनावी रणनीति से लेकर, संसाधन जुटाने और विपक्ष के साथ तालमेल बनाने से लेकर सरकार के साथ कामचलाऊ रिश्ते रखने तक के सारे काम अहमद पटेल के जिम्मे थे। और ऐसा नहीं था कि यह काम वे पिछले पांच-दस साल से कर रहे थे। यह काम वे राजीव गांधी के जमाने से कर रहे थे। यह अहमद पटेल की खासियत थी कि वे इंदिरा गांधी के जमाने में भी पार्टी के ट्रबलशूटर रहे, राजीव गांधी के जमाने में भी और सोनिया गांधी के जमाने में भी। अंत में आकर राहुल गांधी ने भी मान ही लिया था कि अहमद पटेल के बगैर काम नहीं चलने वाला है। इसलिए अपने तमाम नए साथियों के बावजूद वे भी अहमद पटेल की समझदारी और उनकी सक्रियता पर निर्भर थे। तभी यह बड़ा सवाल है कि उनके बगैर कांग्रेस का काम कैसे चलेगा? कहने को कह सकते हैं कि कोई भी व्यक्ति इतना अहम नहीं होता कि उसके बिना दुनिया रूक जाए। आखिर ‘हू आफ्टर नेहरू’ का भी जवाब देश ने दिया था और कांग्रेस पार्टी व देश दोनों आगे बढ़ते गए थे। ऐसे ही अहमद पटेल के बिना भी कांग्रेस चलेगी। पर मुश्किल इसलिए होगी क्योंकि वे अचानक राजनीतिक परिदृश्य से चले गए हैं। अगर थोड़ा समय लेकर जाते, जैसे कांग्रेस के बाकी प्रबंधकों की विदाई हुई तो पार्टी को मुश्किल नहीं आती। जैसे माखनलाल फोतेदार रिटायर हुए या आरके धवन की विदाई हुई तो उन्हें पर्याप्त समय मिला और संक्रमण की अवधि में अगली पीढ़ी को सब कुछ ट्रांसफर हुआ। इस बार ऐसा लग नहीं रहा है कि अहमद पटेल के हाथों सब कुछ ट्रांसफर हुआ। सब कुछ उनके हाथ में ही था और एक अक्टूबर को कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद उनको और पार्टी को पूरी उम्मीद थी कि वे वापसी करेंगे। पांच-छह दिन पहले ही अस्पताल में उनके मुस्कुराते हुए डॉक्टरों के साथ टहलने की वीडिया जारी की गई थी। इससे भी यह संदेश दिया गया था कि वे ठीक हो रहे हैं। पर वे ठीक नहीं हुए। तभी अहम सवाल है कि अब आगे क्या? कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को जल्दी से जल्दी किसी को पार्टी का कोषाध्यक्ष नियुक्त करना होगा। वह कोषाध्यक्ष वैसा होना चाहिए, जो पार्टी के लिए कोष की व्यवस्था कर सके। इसके अलावा एक राजनीतिक सलाहकार ऐसा चाहिए, जो मौजूदा जटिल राजनीतिक माहौल में आगे आगे टॉर्च दिखाते हुए चल सके। इस समय कांग्रेस के पास ऐसा नेताओं की घनघोर कमी है, जो पार्टी के अंदर किसी भी विवाद पर आम सहमति से हल निकाल सके। ऐसे नेता तो बिल्कुल नहीं हैं, जो फोन उठा कर देश के किसी भी विपक्षी नेता से बात करें और वह नेता ध्यान से उसकी बात सुने और उस पर अमल करे। यह अहमद पटेल की ताकत थी। उन्होंने अनगिनत बार कांग्रेस और विपक्षी कुनबे में बिगड़ती बात संभाली है। चाहे उत्तर प्रदेश का तालमेल रहा हो या बिहार, बंगाल का हर मामले को वे सुलझाते थे।
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