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अलग होकर सफलता का संकट

ByNI Political,
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अलग होकर सफलता का संकट
ऐसा नहीं कि भारतीय जनता पार्टी साथ रहते हुए अपने सहयोगियों को निपटा देती है तो अलग होकर सहयोगी बच जाते हैं। भाजपा से अलग होकर सहयोगियों का और नुकसान होता है। शिव सेना जैसी पार्टियों का एकाध अपवाद है, अन्यथा अलग होने वाली ज्यादातर पार्टी खत्म हो गईं। भाजपा से अलग होकर उसके अपने नेताओं ने भी जो पार्टियां बनाईं, वह भी नहीं चल सकीं और सबको अंत में अपनी पार्टी का विलय भाजपा में करना पड़ा। भाजपा से अलग होकर खत्म होने की ताजा मिसाल अकाली दल की है। अकाली दल और भाजपा का दशकों का संबंध था। लेकिन कृषि कानून पर अकाली दल ने भाजपा से नाता तोड़ लिया और हरसिमरत कौर बादल ने केंद्र सरकार से इस्तीफा दे दिया। उसके बाद हुए पहले विधानसभा चुनाव में अकाली दल का सूपड़ा साफ हो गया। पिछली विधानसभा में उसके 18 विधायक थे, जबकि इस बार सिर्फ दो जीत पाए। प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर बादल दोनों विधानसभा का चुनाव हारे। विधानसभा के साथ साथ राज्यसभा से भी पार्टी साफ हो गई है। Read also ममता का यह कैसा मॉडल! Akali BJP and Captain उससे पहले चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी का यही हस्र हुआ। दशकों तक टीडीपी और भाजपा सहयोगी थे। टीडीपी ने भाजपा के साथ सहयोग दिखाते हुए सुरेश प्रभु को अपने कोटे से राज्यसभा में भेजा था। लेकिन वह भाजपा से अलग हुई तो भाजपा ने उसके सारे राज्यसभा सांसदों को तोड़ लिया और पार्टी लोकसभा व विधानसभा दोनों चुनावों में साफ हो गई। बिहार में भाजपा से अलग होकर 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ी जदयू को 40 लोकसभा सीटों में से सिर्फ दो पर जीत मिली थी। हालांकि बाद में उसने राजद से मिल कर भाजपा को हराया। बहरहाल, झारखंड में 2019 में भाजपा के साथ चुनाव लड़ कर एक लोकसभा सीट जीतने वाली आजसू विधानसभा में अलग लड़ी तो सिर्फ दो सीट जीत पाई। ऐसे ही राष्ट्रीय लोकदल जब से भाजपा से अलग हुई है तब से अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रही है। चिराग पासवान की लोजपा भी एक मिसाल है।
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