सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जजों के लिए ढेर सारे आयोग और ट्रिब्यूनल में अध्यक्ष और सदस्य के पद आरक्षित हैं। सरकार की ओर से रिटायरमेंट के बाद कोई पद देने की मिसाल कम ही है। लेकिन केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद ऐसी घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है, जब देश की सर्वोच्च अदालत से कोई जज रिटायर हुआ हो और उसे तत्काल किसी बड़े पद पर नियुक्त कर दिया है। इस मामले में नया नाम जस्टिस एस अब्दुल नजीर का है। उनको आंध्र प्रदेश जैसे बड़े राज्य का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। जस्टिस नजीर काफी चर्चित रहे हैं और सरकार को राहत देने वाले कई फैसलों में शामिल रहे हैं। सबसे हाल में वे नोटबंदी पर दिए गए फैसले से चर्चा में थे।
जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने पांच सौ और एक हजार रुपए के नोट बंद करने के केंद्र सरकार के फैसले को वैध ठहराते हुए उस पर मुहर लगाई थी। उस बेंच में जस्टिस नजीर के साथ जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस बी रामासुब्रह्मण्यम शामिल थे। राजनीतिक रूप से बेहद अहम दो और मामलों में फैसला देने वाली बेंच में जस्टिस नजीर शामिल थे। वे अयोध्या में राम मंदिर से जुड़े मामले पर फैसले देने वाली बेंच में भी थे और तीन तलाक को अवैध ठहराने वाली बेंच में भी शामिल थे। गौरतलब है कि राम मंदिर पर फैसला देने वाली बेंच के अध्यक्ष चीफ जस्टिस रंजन गोगोई थे, जिनको रिटायर होने के तुरंत बाद राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया था। तब इसे लेकर काफी विवाद हुआ था। केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट के रिटायर चीफ जस्टिस पी सदाशिवम को केरल का राज्यपाल बनाया गया था। तब भी कानून के जानकारों ने इसे गलत परंपरा की शुरुआत कहा था।