कहा जा रहा है कि अपर्णा लखनऊ कैंट की सीट से चुनाव लड़ना चाहती थी। इसमें अखिलेश को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए थी। आखिर अपर्णा 2017 के चुनाव में इस सीट से लड़ी थीं और करीब 34 हजार वोट के बड़े अंतर से हारी थीं। भाजपा की रीता बहुगुणा जोशी ने उनको हराया था। दोनों के बीच वोट का अंतर 20 फीसदी का था। बाद में जोशी इलाहाबाद से सांसद बन गईं तो इस सीट पर उपचुनाव हुआ, जिसमें भाजपा के सुरेश चंद्र तिवारी जीते। इस बार अपर्णा नहीं लड़ीं और सपा और भाजपा के बीच वोट का अंतर 30 फीसदी हो गया। Aparna Yadav joins BJP
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सो, इस बार अगर अपर्णा लड़ना चाहती थीं तो उनको सीट दी जा सकती थी। अगर वे जीत जातीं तब भी अखिलेश के लिए कोई चुनौती नहीं थी और हार जातीं तब भी कोई खास फर्क नहीं पड़ता। इसके बावजूद अखिलेश ने उनको नहीं रोका और भाजपा में जाने दिया तो कारण कुछ और होगा। ध्यान रहे मुलायम सिंह के साथ साथ अखिलेश यादव और प्रतीक यादव दोनों आय से अधिक संपत्ति के मामले में उलझे हुए हैं। संभव है कि अपर्णा यादव भाजपा के साथ जुड़ कर अपने पति प्रतीक के लिए कुछ राहत हासिल करना चाहती हों। संभवतः इसी वजह से वे बार बार प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी की तारीफ भी करती रही हैं। बहरहाल, चाहे जो भी कारण हो, पर टिकट का कारण उसमें आखिरी होगा क्योंकि मुलायम परिवार में कितनी भी संख्या में सदस्यों के लड़ने पर कोई रोक नहीं है।
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