तो क्या यह माना जाए कि लगातार तीन बार में 15 साल तक असम के मुख्यमंत्री रहे तरुण गोगोई ने हार मान ली है? उन्होंने यह मान लिया है कि अब असम में कांग्रेस पार्टी भाजपा को नहीं हरा पाएगी और भाजपा को हराने के लिए नई पार्टी की जरूरत है? उन्होंने ऑल असम स्टूडेंट यूनियन, आसू की पार्टी बनाने की तैयारियों को लेकर यहीं बात कही है। उन्होंने कहा है कि नई पार्टी बनने से कांग्रेस का नुकसान होगा फिर भी उनको ऐसा लग रहा है कि भाजपा को हराने के लिए नई पार्टी की जरूरत है। सवाल है कि असम में जब नागरिकता कानून विरोध की वजह से भाजपा बैकफुट पर है तो कांग्रेस विरोधी वाला स्पेस क्यों छोड़ना चाहती है?
क्या इसके पीछे तरुण गोगोई की अपनी निजी राजनीति काम कर रही है? क्या उनको लग रहा है कि प्रदेश में अपने बेटे गौरव गोगोई को मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करने का सही समय नहीं आया है? या आसू की संभावित पार्टी के साथ वे कांग्रेस के तार जोड़ने में लगे हैं? कांग्रेस के जानकार नेताओं का कहना है कि तरुण गोगोई ऐसी कोई स्थिति नहीं बनने देना चाहते हैं कि प्रदेश की राजनीतिक कमान उनके परिवार के हाथ से निकल कर कांग्रेस के किसी और नेता के हाथ में जाए। उनकी इसी राजनीति के चक्कर में हिमंता बिस्वा सरमा कांग्रेस छोड़ कर भाजपा के साथ चले गए। गोगोई की राजनीति यह भी रहती है कि किसी तरह से सरमा की कांग्रेस में वापसी को भी रोका जाए।