असम में चार महीने के बाद विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और उससे पहले विपक्षी एकता की कोई कोशिश सिरे नहीं चढ़ रही है। कांग्रेस के दिग्गज नेता और लगातार तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे तरुण गोगोई के निधन के बाद विपक्षी एकता की संभावना और कम हो गई है। भाजपा के खिलाफ मिल कर चुनाव लड़ने के कांग्रेस के प्रयासों को सिर्फ एक पार्टी का समर्थन मिला है। बदरूद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ ने कांग्रेस के प्रयासों का समर्थन किया। लेकिन कांग्रेस पार्टी अब उनसे दूरी बनाने लगी है। कांग्रेस को ऐसी फीडबैक मिली है कि अजमल की पार्टी के साथ गठबंधन बनाने पर भाजपा से आमने-सामने के मुकाबले में भाजपा को ध्रुवीकरण कराने में आसानी हो जाएगी। भाजपा अजमल के खिलाफ आसानी से बहुसंख्यक हिंदू वोटों को गोलबंद कर सकती है। इस चिंता में कांग्रेस ने अजमल से दूरी बनाई है। कांग्रेस के प्रभारी जितेंद्र सिंह ने कहा है कि स्थानीय नेताओं की फीडबैक ली जा रही है और उस आधार पर पार्टी आलाकमान फैसला करेगा।
तरुण गोगोई जब जीवित थे तब उन्होंने सभी विपक्षी पार्टियों को साथ लाने का प्रयास किया था। ऑल असम स्टूडेंट यूनियन यानी आसू ने अपनी अलग पार्टी बनाई है। इसका बड़ा असर होने की संभावना है। इसके अलावा हाग्रामा मोहिलारी की पार्टी बीपीएफ भी भाजपा गठबंधन से अलग हो गई है। पहले यह पार्टी कांग्रेस के साथ रह चुकी है। बोडोलैंड के इलाके में इसका बड़ा असर है। इसके अलावा किसान नेता व सामाजिक कार्यकर्ता अखिल गोगोई की भी पार्टी है। अगर कांग्रेस की ओर से कोई बड़ा नेता पहल करता तो इन पार्टियों के साथ तालमेल हो सकता था। लेकिन प्रदेश में कांग्रेस के पास कोई ऐसा नेता नहीं है, जो सबको एकजुट कर सके। ऊपर से बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद के चुनाव में कांग्रेस और अजमल की पार्टी के साझा प्रचार का असर भी लोग देख चुके हैं। इसलिए ऐसा लग रहा है कि महागठबंधन बनाने का प्रयास बहुत सफल नहीं होगा और चुनाव बहुकोणीय हो जाएगा। इसका सीधा फायदा भाजपा को होगा।
असम में महागठबंधन के प्रयास विफल होंगे!
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