पिछले लोकसभा चुनाव के समय कांग्रेस ने जब प्रियंका गांधी वाड्रा को सक्रिय राजनीति में उतारा और उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया तो लगा था कि भले लोकसभा में कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई है लेकिन अगले विधानसभा चुनाव में वह जरूर बड़ी ताकत बनेगी। यह भी कहा जा रहा था कि प्रियंका को पार्टी मुख्यमंत्री के दावेदार के तौर पर पेश कर सकती है। लेकिन उसके बाद कांग्रेस की स्थिति ठीक होने की बजाय लगातार बिगड़ती गई। राहुल और प्रियंका दोनों के प्रयासों के बावजूद कांग्रेस अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाई। पिछले दिनों हुए पंचायत चुनावों के बाद यह साफ हो गया है कि कांग्रेस हाशिए की ही पार्टी है।
तभी अब सवाल है कि कांग्रेस अगले चुनाव में क्या करेगी? वह अकेले चुनाव लड़ेगी या कोई गठबंधन बनाने का प्रयास करेगी। ध्यान रहे उत्तर प्रदेश में गठबंधन के कई प्रयोग हो चुके हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने मिल कर चुनाव लड़ा था और उससे पहले 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी मिल कर लड़े थे। ये दोनों प्रयोग असफल रहे। हालांकि कुछ अति आशावादी नेता मानते हैं कि अगर 2017 वाले गठबंधन में मायावती भी शामिल हो गई होतीं या 2019 वाले गठबंधन में कांग्रेस शामिल हो गई होती तो तस्वीर अलग होती।
इस लिहाज से दो प्रयोग अभी होने बाकी हैं। पहला प्रयोग तो यह है कि राज्य की चारों विपक्षी पार्टियां- सपा, बसपा, कांग्रेस और रालोद एक साथ लड़ें। इसकी संभावना बहुत कम है। दूसरा प्रयोग यह है कि कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी एक साथ लड़ें। हालांकि राजस्थान में बसपा विधायकों के कांग्रेस में शामिल हो जाने से मायावती बहुत नाराज हैं फिर भी कांग्रेस के कुछ नेता इस प्रयोग में हाथ डालने को तैयार हैं। इसका कारण ब्राह्मण वोट को बताया जा रहा है।
असल में उत्तर प्रदेश में अभी ब्राह्मण मतदाताओं को लेकर बहुत कंफ्यूजन है। सबको ऐसा लग रहा है कि योगी आदित्यनाथ के राज में ब्राह्मण उपेक्षित रहा है और कई किस्म की हिंसा का शिकार हुआ है। इसलिए उसका भाजपा से मोहभंग हुआ है। लेकिन मुश्किल यह है कि अभी मुख्य मुकाबले में भाजपा के सामने समाजवादी पार्टी दिख रही है और ब्राह्मण कभी भी समाजवादी पार्टी का वोटर नहीं रहा है। इसके उलट ब्राह्मण बसपा को भी वोट करता रहा है और कांग्रेस को भी। ऐसे में अगर कांग्रेस और बसपा का तालमेल होता है तो ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम का पुराना वोट समीकरण बन जाएगा और इसमें जाट के जुड़ने में भी दिक्कत नहीं होगी। तभी कांग्रेस के कई नेता चाहते हैं कि मायावती से बात की जाए और उनको मनाया जाए। उधर मायावती के यहां भी सोच है कि उनके लिए यह आखिरी मौका होगा क्योंकि अगले साल चुनाव के समय तक उनकी उम्र 66 साल से ऊपर होगी। अगर इस बार बसपा लगातार तीसरी बार चुनाव हारती है तो उसके बाद पार्टी बचाए रखना और चलाना मुश्किल होगा। मायावती अगर कांग्रेस के साथ जाती हैं तो अखिल भारतीय स्तर पर एक मजबूत राजनीतिक समीकरण बन सकता है। सो, चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में कुछ न कुछ प्रयोग होना है।
यूपी में कांग्रेस क्या करेगी?
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