भगवंत मान स्टैंडअप कॉमेडियन थे और एक हिंदी न्यूज चैनल पर भी ‘मान न मान’ नाम से उनका प्रोग्राम आता था। उसी मान न मान वाले अंदाज में अरविंद केजरीवाल को मजबूरी में भगवंत मान के नाम का ऐलान करना पड़ा। पंजाब में और देश में भी कुछ भोले लोग जरूर होंगे, जिनको लगता होगा कि जनता की मर्जी से मान को चुना गया है। लेकिन असलियत में भगवंत मान का नाम पहले तय हो गया था और मोबाइल पोल के जरिए उस पर लोगों की मुहर लगवाने का दिखावा हुआ। यह सही है कि केजरीवाल की पहली पसंद मान नहीं थे। उनके बहुत करीबी जानकारों का कहना है कि केजरीवाल पंजाब जैसे संवेदनशील और सीमावर्ती राज्य के लिए मान को उपयुक्त नहीं मानते थे। वे हमेशा उनको एक अगंभीर नेता मानते रहे हैं। फिर भी मजबूरी मे उनके नाम की घोषणा करनी पड़ी।
यह मजबूरी कई कारणों से थी। पहली मजबूरी तो चुनावी थी। पिछला चुनाव आम आदमी पार्टी ने बिना सीएम दावेदार पेश किए लड़ा था, जिससे यह मैसेज गया कि अरविंद केजरीवाल खुद भी सीएम बन सकते हैं। उस समय मीडिया में यह चर्चा हो रही थी कि दिल्ली जैसे अर्ध राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर केजरीवाल कुछ नहीं कर पा रहे हैं इसलिए वे पंजाब के मुख्यमंत्री बन कर दिखाएंगे कि वे क्या कर सकते हैं और उसके बाद प्रधानमंत्री पद के लिए उनकी दावेदारी को गंभीरता से लिया जाएगा। इस प्रचार से आप का नुकसान हुआ। तभी केजरीवाल ने इस बार पहले ही ऐलान किया आप की सरकार बनी तो सिख ही मुख्यमंत्री होगा। पिछली बार नुकसान कम करने के लिए पार्टी ने भगवंत मान को अघोषित दावेदार के तौर पर विधानसभा का चुनाव लड़वाया भी था लेकिन वे हार गए थे।
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दूसरी मजबूरी मान ने पैदा की हुई थी। वे किसी हाल में अपने नाम की घोषणा के लिए अड़े थे। वे बगावत तक करने को तैयार थे। पार्टी नेतृत्व की मजबूरी यह है कि पिछले छह सात साल में पार्टी के लगभग सारे बड़े नेता पार्टी छोड़ कर जा चुके हैं। सुच्चा सिंह छोटेपुर से लेकर एचएस फुल्का और बैंस बंधुओं में से भी कोई पार्टी के साथ नहीं है। ऐसे में पार्टी के पास ले-देकर दिखाने के लिए एक ही नेता हैं भगवंत मान। अगर ऐन चुनाव के समय वे तेवर दिखाते और प्रचार से दूर रहते तो पार्टी को मुश्किल होती।
तीसरी मजबूरी यह थी कि बाहर से कोई बड़ा चेहरा लाने का प्रयास कामयाब नहीं हो सका। ऐसा माना जा रहा है कि आखिरी समय तक नवजोत सिंह सिद्धू के कांग्रेस छोड़ कर आप में शामिल होने का इंतजार किया गया। लेकिन वे नहीं आए। किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल को लाकर सीएम का चेहरा बनाने की बात हो रही थी लेकिन उन्होंने अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया। कोरोना महामारी के दौरान मसीहा बन कर उभरे फिल्म अभिनेता सोनू सूद को दिल्ली के मेंटर अभियान का ब्रांड एंबेसेडर इसलिए बनाया गया था ताकि उनको पंजाब में चेहरा बनाया जा सके पर उनकी बहन कांग्रेस के साथ चली गईं। सो, अंत में अकेले मान बचे, जिनकी घोषणा कर दी गई।
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