रियल पालिटिक्स

नीतीश ने भी अपना दांव चल दिया है

ByNI Political,
Share
नीतीश ने भी अपना दांव चल दिया है
अगर बिहार में भारतीय जनता पार्टी ने ज्यादा सीटों पर लड़ने या अपनी सहयोगी जनता दल यू की संभावना को नुकसान पहुंचाने का दांव चला है तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी अपना दांव चल दिया है। उन्होंने जिस अंदाज में टिकट बांटे हैं उसे देख कर नहीं लग रहा है कि वे भाजपा के साथ चुनाव लड़ रहे हैं। नीतीश की पार्टी जदयू ने अपने कोटे की 115 सीटों में से 11 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार दिए हैं। सोचें, नीतीश ने करीब दस फीसदी मुस्लिम उम्मीदवार दिए हैं। इसका मतलब है कि वे भाजपा के साथ होने के बावजूद अपनी सेकुलर छवि को लेकर भरोसे में हैं। यह भी कहा जा रहा है कि उन्होंने आगे की राजनीति का संकेत भी इससे दिया है। उन्होंने 18 यादव उम्मीदवार दिए हैं। इसका मतलब है एम-वाई समीकरण के 29 उम्मीदवार हैं। उनके कोटे की एक चौथाई सीटें इन दो समुदायों को गई हैं। यह चुनाव बाद बनने वाले संभावित समीकरण का संकेत हो सकता है। नीतीश कुमार ने टिकट बंटवारे में सबसे ज्यादा ध्यान उसी पर किया है, जो उनका कोर वोट है। कोईरी-कुर्मी और धानुक जातियां उनको अपना मानती हैं। उनकी अपनी जाति से इन तीन जातियों की पहचान होती है। नीतीश ने इन तीन जातियों को 34 सीटें दी हैं। यानी भाजपा से तालमेल करने से पहले नीतीश ने जिस लव-कुश समीकरण पर समता पार्टी बनाई थी और राजनीति शुरू की थी उसे 34 सीटें दी गई हैं। उनको लग रहा है कि यह समाज उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनाने के लिए एकतरफा वोट करेगा। सवर्णों में नीतीश कुमार ने भूमिहार पर फोकस किया है, जो उनका परंपरागत वोट है। उन्होंने दस टिकट भूमिहारों को दी है। उन्होंने अतिपिछड़ी जातियों को 21 टिकटें दी हैं, जिन पर उनकी सरकार का सबसे ज्यादा फोकस रहा है। नीतीश कुमार ने वैश्य समाज से सिर्फ तीन उम्मीदवार उतारे हैं। यादव समाज की 18 टिकटों को छोड़ दें तो बाकी 97 टिकटें नीतीश कुमार ने अपने पारंपरिक वोट को ध्यान में रख कर बांटी हैं। जाहिर है वे सिर्फ अपने वोट के सहारे चुनाव लड़ रहे हैं।
Published

और पढ़ें