बिहार में भाजपा नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की वर्चुअल रैली को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। विपक्षी पार्टियां इसे गिद्ध की मानसिकता बता रही हैं और इस बात के लिए भाजपा की आलोचना कर रही हैं कि उसे कोरोना वायरस के संक्रमण की भयावह स्थिति में भी चुनावी राजनीति सूझ रही है। तभी भाजपा ने मजबूरी में कहा कि यह चुनावी रैली नहीं थी, बल्कि कोरोना से लड़ने के लिए घोषित आत्मनिर्भर भारत अभियान के पैकेज के बारे में जानकारी देने के लिए इसका आयोजन हुआ था। पर जिस पैमाने पर इस रैली का आयोजन हुआ उससे साफ जाहिर होता है कि यह चुनाव का आगाज करने वाली रैली थी। तभी बिहार की राजनीतिक पार्टियां रैली की तैयारियां और उस पर हुए खर्च के बारे में सवाल कर रही हैं।
बिहार में अमित शाह की वर्चुअल रैली के लिए राज्य के लगभग सभी 72 हजार बूथों पर एलईडी स्क्रीन लगाने की चर्चा है। यह संख्या कुछ कम या ज्यादा हो सकती है पर यह सही है कि बड़ी संख्या में एलईडी स्क्रीन लगाई गई और यह सुनिश्चित किया गया है कि हर स्क्रीन के आसपास 50 से ज्यादा लोग इकट्ठा न हों ताकि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए वे रैली में हिस्सा लें। इसके अलावा अपने अपने स्मार्ट फोन या कंप्यूटर-लैपटॉप पर भी लोगों ने अमित शाह का भाषण सुना। तभी बिहार की मीडिया में और सोशल मीडिया में भी इस रैली की तैयारियों पर हुए खर्च को बड़ी चर्चा है।
कई जानकार यह भी बता रहे हैं कि आमतौर पर होने वाली पारंपरिक रैलियों से ज्यादा खर्च इस वर्चुअल रैली पर किया गया है। इस तरह की अनगिनत रैलियों की योजना बनाई गई है। इसी हफ्ते भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की रैली होनी है और फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी किस्म की वर्चुअल रैली के जरिए पार्टी के चुनाव अभियान का बिगुल बजाने वाले हैं। पर कोरोना संकट के बीच रैली की आलोचना के बाद भाजपा सावधानी से इनका आयोजन करेगी।
बिहार की रैली को लेकर सवाल
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