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कांग्रेस की उपयोगिता कम नहीं होगी!

ByNI Political,
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कांग्रेस की उपयोगिता कम नहीं होगी!
बिहार विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान जनता दल यू को हुआ है पर कांग्रेस भी कम घाटे में नहीं रही है। उसकी परफारमेंस इस बार बहुत खराब हुई है। पिछली बार 43 सीटों पर लड़ कर वह 27 सीटों पर जीती थी, जबकि इस बार 70 सीटों पर लड़ी और सिर्फ 19 सीट जीती। सो, महागठबंधन की हार की व्याख्या में सबसे ज्यादा चर्चा इस बात पर हो रही है कि अगर कांग्रेस कम सीटों पर लड़ी होती तो महागठबंधन बेहतर करता। ज्यादातर लोग मान रहे हैं कि अगर कांग्रेस कोटे से कुछ सीटें राजद या लेफ्ट पार्टियों को मिली होतीं तो वे लोग कुछ और सीटें जीत सकते थे। इस आधार पर यह माना जा रहा है कि सहयोगियों के लिए अब कांग्रेस की उपयोगिता कम होगी। पर असल में ऐसा नहीं होगा क्योंकि कई जगह अब भी कांग्रेस की उपयोगिता बनी हुई है। जैसे बिहार से सटे झारखंड में दो सीटों पर हुए उपचुनाव में एक-एक सीट कांग्रेस और उसकी सहयोगी जेएमएम ने जीती। ध्यान रहे झारखंड और महाराष्ट्र दोनों जगह कांग्रेस की मदद से गैर भाजपा सरकार बनी है और चल रही है। कर्नाटक में भी कांग्रेस ने अपना हित छोड़ कर छोटी पार्टी जेडीएस का मुख्यमंत्री बनाया था। सो, कांग्रेस की उपयोगिता अपनी जगह है और उसे सहयोगी भी मिलते रहेंगे। जैसे अगले साल जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं उन सभी राज्यों में कांग्रेस सहयोगियों के साथ मिल कर लड़ेगी। केरल में पहले से उसका यूडीएफ बना हुआ है और तमिलनाडु में भी कांग्रेस और डीएमके का तालमेल है। पश्चिम बंगाल में भी कांग्रेस और लेफ्ट मिल कर लड़ेंगे, इसकी संभावना है और चुनाव के बाद अगर जरूरत पड़ती है तो कांग्रेस पार्टी राज्य में ममता बनर्जी की सरकार बनवाने में मदद कर सकती है। ऐसे ही असम में भी कांग्रेस पार्टी के नेता सभी गैर भाजपा दलों के साथ बातचीत कर रहे हैं और जल्दी ही वहां भी तालमेल हो जाएगा। सो, कांग्रेस भले बिहार में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई लेकिन अब भी प्रादेशिक पार्टियों के लिए उसकी उपयोगिता बनी रहेगी।
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