बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार को इन दिनों बहुत गुस्सा आ रहा है। विधानसभा चुनाव प्रचार में जो सिलसिला शुरू हुआ वह विधानसभा के पहले सत्र तक में जारी रहा। विधानसभा का पहला सत्र आमतौर पर औपचारिक होता है, जिसमें सदस्यों की शपथ और स्पीकर का चुनाव होता है। लेकिन उसमें भी उनकी जबरदस्त झड़प विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव से हुई। वे इतना ज्यादा गुस्सा हुए, जिसकी मिसाल नहीं है। पहली बार लोगों ने उनको इतने गुस्सा में देखा। उन्होंने तेजस्वी को सदन में 40 साल का इतिहास याद दिलाया। कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद लालू प्रसाद को लोकदल विधायक दल का नेता बनाने का भी जिक्र किया। खुद तेजस्वी को उप मुख्यमंत्री बनाने का श्रेय लिया।
पर असल में उनका यह गुस्सा तेजस्वी पर नहीं था, बल्कि अपनी सहयोगी भारतीय जनता पार्टी पर है, जिसकी राजनीति की वजह से उनको बड़ा नुकसान हुआ। जदयू के जानकार सूत्रों का कहना है कि नीतीश को पूरा यकीन है कि चिराग पासवान के जरिए भाजपा ने उनका नुकसान कराया। वे मानते हैं कि अगर भाजपा के बड़े नेता चिराग को समझाते तो उनसे तालमेल भी हो जाता और वे जदयू के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारते। ध्यान रहे चिराग पासवान की पार्टी के उम्मीदवारों की वजह से जदयू को तीन दर्जन सीटों का नुकसान हुआ है। करीब 36 सीटों पर उनकी पार्टी ने इतने वोट काटे हैं, जिनसे जदयू का उम्मीदवार जीत सकता था। वह एनडीए का ही वोट था। नीतीश कुमार को असल में इसी का गुस्सा है। वे गाहे-बगाहे चिराग पर तो अपना गुस्सा निकाल लेते हैं, लेकिन भाजपा को नहीं बोल पा रहे हैं। सो, वहीं भाजपा का गुस्सा उन्होंने विधानसभा में राजद पर निकाला। लेकिन साथ ही लालू प्रसाद को भाई जैसा दोस्त भी बता दिया। भाजपा को भी यह मैसेज समझ में आया होगा।