बिहार पीपुल्स पार्टी के संस्थापक रहे पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई का मुद्दा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को निजी तौर पर बहुत परेशान करेगा। पहले ऐसा लग रहा था कि उनकी रिहाई का मामला तूल नहीं पकड़ेगा। लेकिन भाजपा ने परदे के पीछे से इसे बड़ा मुद्दा बनवा दिया है। पहले बसपा प्रमुख मायावती ने इस मामले को उठाया और कहा कि जी कृष्णैया दलित थे, जिनकी हत्या में आनंद मोहन को सजा हुई थी और उनकी रिहाई दलितों का अपमान है। इसके बाद भाजपा की आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने एक ट्विट किया। इसके अलावा भाजपा के किसी बड़े नेता ने खुल कर इस पर कुछ नहीं कहा है क्योंकि वोट का नुकसान होने का खतरा है। भाजपा अपने प्रॉक्सीज के जरिए राज्य सरकार को घेर रही है और नीतीश की छवि बिगाड़ने का काम कर रही है।
नीतीश की छवि महादलित, अतिपिछड़ा और वंचित के रहनुमा वाली रही है। उनकी छवि कानून व्यवस्था ठीक करने, सुशासन बहाल करने और अपराधियों को जेल में डालने वाली रही है। उसी के ऊपर हमला किया जा रहा है। नीतीश की सहयोगी राजद को दिक्कत नहीं है क्योंकि पहले से ही उसे बाहुबलियों की पार्टी कहा जाता था। नीतीश उसी के कंट्रास्ट में आगे बढ़े थे। अब उनकी उस छवि पर सवाल उठ रहा है। इस वजह से अगर महादलित और अतिपिछड़ा वर्ग का कुछ वोट उनसे टूटता है तो वह उनकी राजनीति के लिए भारी पड़ेगा। हो सकता है कि राजपूत वोट भी नीतीश की पार्टी को न मिलें क्योंकि आनंद मोहन की रिहाई का श्रेय राजद को मिल रहा है। सो, श्रेय राजद को और ठीकरा नीतीश पर! नीतीश कुमार की मुश्किल यह है कि इतने बरसों तक सरकार में रहने के बावजूद मीडिया, सोशल मीडिया का इस्तेमाल उनकी पार्टी को नहीं आया। नैरेटिव कंट्रोल करने का काम उनकी पार्टी और सरकार नहीं करती है। उसका खामियाजा उनको भुगतना पड़ रहा है।