भारतीय जनता पार्टी के नेता बिहार में हल्ला ज्यादा कर रहे हैं, जबकि वास्तविक स्थिति अलग है। भाजपा की ओर से दावा किया जा रहा है कि वह बिहार विधान परिषद में सबसे बड़ी पार्टी बन गई है लेकिन असल में ऐसा नहीं है। नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यू अब भी विधान परिषद की सबसे बड़ी पार्टी है। जिन दो सीटों पर जीत के आधार पर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा कर रही है उन सीटों के भी पुराने पार्षदों का कार्यकाल मई के पहले हफ्ते तक है। इसलिए तकनीकी रूप से अब भी जदयू ही सबसे बड़ी पार्टी है।
मई के बाद भी इस स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं आना है। ध्यान रहे बिहार में जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष रहे उपेंद्र कुशवाहा ने पार्टी छोड़ी तो साथ ही विधान परिषद की सदस्यता भी छोड़ दी। वे विधायकों द्वारा चुनी जाने वाली सीट से पार्षद हैं। सो, उस सीट पर चुनाव होते ही जदयू की सीट एक और बढ़ जाएगी और उसके बाद भाजपा और जदयू की सीटें बराबर हो जाएंगी। लेकिन भाजपा के लिए चिंता की बात यह होनी चाहिए कि सारण शिक्षक क्षेत्र में उसका उम्मीदवार सातवें स्थान पर रहा।
असल में पिछले दिनों बिहार में विधान परिषद की पांच सीटों पर चुनाव हुआ था, जिसमें से दो सीट भाजपा को मिली और दो महागठबंधन को। एक सीट निर्दलीय के खाते में गई। भाजपा को गया की दोनों सीटों पर जीत मिली है, जिसमें से एक सीट उसने जदयू से छीनी है। उपेंद्र कुशवाहा की सीट पर चुनाव में देरी होती है तो नौ मई के बाद भाजपा की सीटों की संख्या 24 होगी और जदयू 23 पर अटकेगी। लेकिन कुशवाहा वाली सीट के चुनाव के बाद दोनों की संख्या बराबर हो जाएगी।