बिहार में पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई होने वाली है। जदयू के साथ राजद की सरकार बनने के बाद से ही इसका इंतजार हो रहा था। अब इंतजार समाप्त हो गया है। राज्य सरकार जेल मैनुअल में बदलाव कर रही है। अब तक जो कानून था उसके मुताबिक ड्यूटी के समय किसी सरकारी कर्मचारी की हत्या करने के दोषी को 14 साल की सजा पूरी होने के बाद भी रिहा नहीं किया जा सकता था। लेकिन अब सरकारी कर्मचारी की हत्या को भी सामान्य हत्या की श्रेणी में लाया जा रहा है। इसका फायदा और भी कई लोगों को मिलेगा लेकिन सबको पता है कि आनंद मोहन को रिहा करने के लिए कानून बदला जा रहा है। मुख्य विपक्षी भाजपा सहित कोई भी पार्टी इसका विरोध नहीं कर रही है। सबको पता है कि आनंद मोहन आज भी राजपूत समाज के सबसे बड़े नेताओं में से हैं और वोट पर उनका बड़ा असर है।
भाजपा इसका विरोध नहीं कर सकती है क्योंकि उसको अगड़ी जातियों खास कर राजपूत समाज का वोट खराब होने की चिंता है। लेकिन उसको दलित वोट का लालच भी है। ध्यान रहे गोपालगंज के तत्कालीन कलेक्टर जी कृष्णैया की हत्या के आरोप में आनंद मोहन को उम्र कैद की सजा मिली है और कृष्णैया दलित थे। सो, भाजपा के बदले बसपा प्रमुख मायावती ने बयान दिया है। उन्होंने राज्य सरकार पर निशाना साधा है और कहा कि वह दलित विरोधी है। उन्होंने कानून बदल कर आनंद मोहन की रिहाई की योजना को दलित विरोधी बताते हुए इसका विरोध किया है। इससे भाजपा उम्मीद कर रही है कि दलित मतदाता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से नाराज होंगे। ध्यान रहे अतिपिछड़ा के साथ साथ महादलित हमेशा नीतीश के लिए समर्पित मतदाता समूह रहा है। उसे अलग करने के मकसद से मायावती ने बयान दिया और मीडिया में उसका प्रमुखता से प्रकाशन, प्रसारण भी हुआ।