बिहार में राजनीतिक समीकरण बदल सकता है। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए में चिराग पासवान की वापसी हो सकती है। अभी तक आधिकारिक रूप से चिराग पासवान किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में वे एनडीए से अलग हो गए थे और 120 के करीब सीटों पर चुनाव लड़ा था। हालांकि कहा जाता है कि भाजपा की शह पर ही उन्होंने सहयोगी जनता दल यू के उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ा था और नीतीश व जदयू के खिलाफ प्रचार किया था। चुनाव से पहले लग रहा था कि भाजपा की ओर से चिराग को इसका बड़ा इनाम मिलेगा। लेकिन चुनाव नतीजे ऐसे आए कि भाजपा को चिराग की नहीं, बल्कि नीतीश की जरूरत बनी रह गई और इस वजह से भाजपा ने चिराग से पल्ला झाड़ लिया। बाद में नीतीश कुमार की शह पर लोक जनशक्ति पार्टी टूटी तो चिराग से अलग हुए पांच सांसदों के गुट के नेता पशुपति पारस को केंद्र में मंत्री बना दिया गया।
इस दौरान चिराग ने राजद नेता तेजस्वी से नजदीकी बढ़ाई। लेकिन नीतीश कुमार के राजद से अलग होने के बाद स्थितियां बदल गई हैं। अब चिराग की एनडीए में पूछ बढ़ने लगी है और केंद्र सरकार के मंत्री पशुपति पारस वाले गुट की पूछ कम हो गई है। इसका कारण यह है कि भाजपा को अंदाजा हो गया है कि रामविलास पासवान की विरासत चिराग पासवान के पास है औ पासवान मतदाता उनको समर्थन करेगा। पिछले दिनों दो सीटों के उपचुनाव हुए तो केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस प्रचार करने नहीं गए। भाजपा उम्मीदवारों ने चिराग पासवान को भेजने की मांग की और चिराग ने उनके लिए प्रचार किया। जानकार सूत्रों के मुताबिक जल्दी ही चिराग की एनडीए में एंट्री होगी। पहले तो भाजपा ने उनकी पार्टी का विलय कराने का प्रस्ताव रखा था लेकिन वे इसके लिए तैयार नहीं हैं। वे एनडीए के सहयोगी बनेंगे और केंद्र सरकार में मंत्री बनेंगे। तब पारस की सरकार से विदाई होगी। संभव है कि उनकी पार्टी के कुछ सांसद चिराग के साथ वापस लौटें और खुद पारस अंत में नीतीश कुमार के यहां अपना ठिकाना खोजें।
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