कांग्रेस पार्टी को बिहार की रणनीति के बारे में फिर से सोचने की जरूरत है। निश्चित रूप से राजद को भी गठबंधन के बारे में विचार करना चाहिए। दो सीटों के उपचुनाव ने इसकी जरूरत समझाई है कि दोनों साथ रहेंगे तभी वे ताकत हैं। अलग होने से दोनों की ताकत कम होती है। तारापुर सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार को जितने वोट मिले हैं लगभग उतने ही वोट से राजद का उम्मीदवार हारा है। लेकिन असली सबक कांग्रेस के लिए है। राज्य की दो सीटों पर उपचुनाव हुए थे, जिसमें तारापुर सीट पर कांग्रेस को 2.12 फीसदी और कुशेश्वरस्थान सीट पर 4.28 फीसदी वोट मिले। किसी राष्ट्रीय पार्टी को इतने कम वोट मिलना आत्मचिंतन का विषय है।
कांग्रेस ने दोनों सीटों पर पूरी ताकत लगाई थी। उसके प्रभारी लगातार चुनाव क्षेत्र में रहे थे और पार्टी के सभी छोटे-बड़े नेताओं की ड्यूटी चुनाव में लगाई गई थी। हाल में पार्टी में शामिल कराए गए सीपीआई नेता कन्हैया कुमार भी प्रचार में गए थे। लेकिन पार्टी के किसी उम्मीदवार को पांच फीसदी भी वोट नहीं मिला। सो, कांग्रेस और महागठबंधन की पार्टियों को नए सिरे से अपनी रणनीति पर विचार करना होगा। कांग्रेस को समझ लेना होगा कि अभी उसके लिए बिहार के हालात अनुकूल नहीं हैं और राजद को भी समझना होगा कि कांग्रेस के बगैर काम नहीं चलेगा।
इसके अलावा दोनों पार्टियों को एक तीसरी पार्टी का साथ लेना भी जरूरी है। वह तीसरी पार्टी चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी हो सकती है। चिराग ने विधानसभा चुनाव की तरह इस बार उपचुनाव में भी जदयू को हरवाने के लिए दोनों सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और दोनों जगह उनके उम्मीदवार को कांग्रेस से ज्यादा वोट आए। अगर राजद, कांग्रेस और लोजपा मिल कर लड़े होते तो दोनों सीटों पर उनकी जीत होती। पिछले दिनों तेजस्वी यादव और चिराग पासवान की मुलाकात भी हुई थी।
कांग्रेस के लिए बिहार अभी मुश्किल है
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