भारतीय जनता पार्टी ने भले महाराष्ट्र में अपना मुख्यमंत्री नहीं बनाया हो और अपने पूर्व मुख्यमंत्री को उप मुख्यमंत्री बनवा कर उसका कद कम किया हो लेकिन अगले कुछ दिन में उसे छप्पर फाड़ फायदा होने वाला है। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने विधान परिषद में 12 सदस्यों के मनोनयन वाली जो फाइल डेढ़ साल से ज्यादा समय से रोक कर रखी थी अब वह रद्दी की टोकरी में चली जाएगी। अब 12 नामों की नई फाइल बनेगी, जिसे राज्यपाल आंख मूंद कर मंजूरी दे देंगे। उन 12 नामों में एकनाथ शिंदे की पसंद के दो-चार नाम हो सकते हैं लेकिन ज्यादातर नाम भाजपा नेताओं के होंगे।
ध्यान रहे उद्धव ठाकरे की सरकार ने विधान परिषद में मनोनयन के लिए 12 नामों की एक सूची नवंबर 2020 में राज्यपाल को भेजी थी। राज्यपाल ने यह सूची 20 महीने से ज्यादा समय तक लटकाए रखी। सोचें, क्या 20 महीने पहले यह प्लानिंग हो गई थी कि उद्धव के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी सरकार को गिराना है और जब तक सरकार गिर नहीं जाती है तब तक कुछ भी हो जाए राज्यपाल फाइल लटकाए रखेंगे? उस एक फाइल को लेकर राज्यपाल की जितनी किरकिरी हुई वह भी मिसाल है। हाई कोर्ट तक ने कहा कि राज्यपाल ऐसी फाइलों को अनंतकाल तक नहीं लटकाए रख सकते हैं। ऐसी टिप्पणी के बावजूद राज्यपाल ने फाइल को मंजूरी नहीं दी।
उस समय सरकार की ओर से भेजे गए 12 नामों में शिव सेना, एनसीपी और कांग्रेस के चार-चार नेताओं के नाम शामिल थे। शिवसेना की ओर से उर्मिला मातोंडकर, नितिन बांगुडे, विजय करंजकर, चंद्रकांत रघुवंशी का नाम भेजा गया था। एनसीपी ने एकनाथ खड़से, राजू शेट्टी, यशपाल भिंगे और आनंद शिंदे का नाम भेजा था, जबकि कांग्रेस ने रजनी पाटिल, सचिन सावंत, मुजफ्फर हुसैन और अनिरुद्ध वनकर का नाम भेजा था। इसमें कुछ सक्रिय राजनीति से जुड़े लोग थे लेकिन कई लोग साहित्य, कला, संगीत आदि के क्षेत्र के थे। इनमें से एकनाथ खड़से जैसे एकाध नेता दूसरे रास्ते से विधान परिषद में चले गए लेकिन बाकी लोग इंतजार ही करते रह गए।
इस सिलसिले में कई बार सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी गई थी। एक बार हाई कोर्ट ने टिप्पणी की। तीनों पार्टियों के नेता राज्यपाल से मिले। एनसीपी ने सूची में बदलाव भी किया। इसके बावजूद राज्यपाल पर कोई असर नहीं हुआ। जाहिर है कि यह योजना के तहत हुआ था। भाजपा की प्लानिंग थी कि तीन विपक्षी पार्टियों को विधान परिषद में 12 सदस्य नहीं बनाने देना है। सरकार गिराई जाएगी और अपने लोगों को उच्च सदन में भेजा जाएगा। अपने फायदे के लिए संवैधानिक पद और व्यवस्था का ऐसे दुरुपयोग की मिसाल मुश्किल है।
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