केंद्र में दूसरी बार नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद एक बड़ा बदलाव यह आया है कि सरकार के सारे बड़े फैसलों पर अमित शाह की छाप दिखाई दे रही है। अपने पहले कार्यकाल में नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का फैसला किया तो उसका ऐलान उन्होंने खुद किया और आज तक इसके लिए लोग उन पर आरोप लगा रहे हैं। पर उसके बाद दूसरे कार्यकाल में इस तरह की सारी बड़ी घोषणाएं या काम अमित शाह कर रहे हैं। और इसलिए विपक्षी पार्टियों के निशाने पर मोदी से ज्यादा शाह हैं।
जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को बदलने का ऐलान उन्होंने किया था। उसके बाद नागरिकता कानून में बदलाव का बिल उन्होंने पेश किया और दोनों सदनों में इस पर बहस का नेतृत्व भी उन्होंने किया। यह माना गया कि यह बिल उनका है। तभी अमेरिका से लेकर देश की विपक्षी पार्टियों और फिल्मी हस्तियों से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं तक ने इसके लिए अमित शाह की आलोचना की।
यह हकीकत है कि संसद में बिल चाहे जो पेश करे पर वह बिल सरकार का माना जाता है और उसका श्रेय प्रधानमंत्री को जाता है। पर नागरिकता बिल का श्रेय भी शाह को मिल रहा है और ठीकरा भी उन्हीं पर फूट रहा है। अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता के काम देखने वाले आयोग ने कहा कि अगर बिल संसद से पास होता है तो अमेरिका को चाहिए कि वह अमित शाह पर पाबंदी लगाए। जाहिर है पाबंदी नहीं लगेगी पर अमेरिकी आयोग के बयान से शाह को लेकर बड़ा मैसेज गया है।
इसी तरह ममता बनर्जी को हमला करना था तो उन्होंने मोदी को छोड़ कर शाह पर निशाना साधा और कहा कि शाह ने देश का सत्यानाश कर दिया। शरद पवार की पार्टी एनसीपी ने अमित शाह की तुलना जनरल डायर की है। कुछ ही दिन पहले शिव सेना ने जामिया के छात्रों पर पुलिस कार्रवाई की तुलना जालियांवाला बाग से की थी। कुछ समझदार लोग मोशा यानी मोदी और शाह को साझा तौर पर जिम्मेदार ठहरा रहे हैं पर मोटे तौर पर हमला शाह को लेकर हो रहा है।
मोदी नहीं अब शाह हैं निशाने पर
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