मतदाताओं में दलबदुओं के साथ महाराष्ट्र में जो किया था वहीं कहानी झारखंड में भी दोहराई गई है। झारखंड में चुनाव से ऐन पहले भाजपा ने कई पार्टियों में तोड़-फोड़ करके बड़े नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कराया था और चुनाव में उनको टिकट भी दी थी। एकाध अपवाद को छोड़ कर ऐसे बाकी तमाम नेता चुनाव हार गए हैं। भाजपा के अलावा भी जिन पार्टियों ने दूसरी पार्टियों के दलबदलुओं को टिकट दिया, उनमें से भी ज्यादातर नेता चुनाव नहीं जीत पाए हैं। कई जगह पर बड़े दलबदलु नेता तीसरे, चौथे स्थान पर चले गए।
हेमंत सोरेन की सरकार में मंत्री रहे जयप्रकाश पटेल ने पाला बदल कर भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा था और वे अपनी मांडू सीट पर तीसरे स्थान पर रहे। जेएमएम से लड़े उनके सगे भाई दूसरे स्थान पर रहे। इसी तरह भाजपा ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और लोहरदगा सीट के विधायक सुखदेव भगत को पार्टी में शामिल करा कर टिकट दिया था। उनकी लोहरदगा सीट एक बडा फैक्टर थी, जिसकी वजह से आजसू से भाजपा का तालमेल टूटा। उस सीट पर भी सुखदेव भगत चुनाव हार गए हैं। इसी तरह कांग्रेस विधायक दल के नेता रहे मनोज यादव को भाजपा ने बरही सीट से चुनाव मैदान में उतारा था। पर वे भी चुनाव नहीं जीत सके। झारखंड मुक्ति मोर्चा में बड़ी तेजी से उभरे युवा नेता कुणाल षाड़ंगी को पार्टी में लेकर भाजपा ने उनको बहरागोड़ा की सीट से लड़ाया था पर मतदाताओं ने उनको भी हरा दिया।