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गांधीनगर से पूरे विपक्ष को सबक

ByNI Political,
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गांधीनगर से पूरे विपक्ष को सबक
गुजरात की राजधानी गांधीनगर में चुनाव तो वैसे नगर निगम का था, जिसके नतीजों के ज्यादा निहितार्थ नहीं निकालने चाहिए। लेकिन चुनाव से पहले और बाद में भाजपा ने जिस अंदाज में इस चुनाव लड़ा और भाजपा के चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री ने ट्विटर पर जितनी लंबी चौड़ी बधाई-शुभकामना लिखी, उसने इस चुनाव के नतीजों का महत्व बढ़ा दिया है। गांधीनगर के नगर निगम चुनाव नतीजों का देश की सभी विपक्षी पार्टियों के लिए बहुत खास महत्व है। अगर पार्टियों ने इससे सबक नहीं लिया तो भाजपा के खिलाफ एकजुट होने के सारे दावों का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को इससे सबसे ज्यादा सबक लेने की जरूरत है। शरद पवार भी इससे सबक लेकर अगर कोई पहल करें तो विपक्ष की राजनीति के लिए अच्छा होगा। bjp wins gandhi nagar गांधीनगर भाजपा का गढ़। पहले लालकृष्ण आडवाणी इस सीट जीतते थे और अभी अमित शाह वहां से सांसद हैं। लेकिन पिछले दो चुनावों से नगर निगम में भाजपा को बहुमत नहीं मिल रहा था, बल्कि कांग्रेस उसे बराबरी की टक्कर दे रही थी। इस बार कांग्रेस बुरी तरह से साफ हो गई है। भाजपा को 44 में से 41 सीटें मिलीं और 52 फीसदी वोट मिले। कांग्रेस को 26 फीसदी वोट मिले लेकिन वह सिर्फ दो सीटें ही जीत सकी। कांग्रेस की इस दुर्दशा के लिए आम आदमी पार्टी जिम्मेदार है, जिसे 17 फीसदी वोट मिले। वह सीट एक ही जीत पाई लेकिन 17 फीसदी वोट की वजह से उसने कांग्रेस का खेल बिगाड़ा। modi bjp

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यह सही है कि भाजपा को जितने वोट मिले हैं उसमें कांग्रेस और आप मिल कर भी उसे नहीं हरा सकते थे लेकिन दोनों साथ होते तो भाजपा को इतना बड़ी बहुमत हासिल करने से रोक सकते थे। कांग्रेस और आप के अलावा शरद पवार की एनसीपी भी नगर निगम का चुनाव लड़ी थी और उसे भी दो फीसदी से ज्यादा वोट मिले हैं। सो, यह कांग्रेस, आप और एनसीपी तीनों के लिए सबक है। उन्हें अगर भाजपा को रोकना है तो साथ आना होगा। लेकिन यह तभी संभव है जब आम आदमी पार्टी स्वतंत्र रूप से अपनी राजनीति कर रही हो। जैसी कि चर्चा है अगर वह भाजपा के कहने से या कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने के मकसद से चुनाव लड़ रही है तब कांग्रेस के साथ उसकी एकता कभी नहीं बन पाएगी। गांधीनगर के नतीजों का तात्कालिक सबक पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिहाज से भी है। आम आदमी पार्टी मणिपुर छोड़ कर बाकी चार राज्यों में ताल ठोक रही है। पंजाब में वह मुख्य विपक्षी पार्टी पहले से है इसलिए वहां उसका दावा बनता है। लेकिन उत्तराखंड, गोवा और उत्तर प्रदेश में उसका कोई आधार नहीं है, कोई संगठन नहीं है और नेताओं का टोटा है फिर भी अरविंद केजरीवाल मुफ्त बिजली, पानी देने और लाखों की संख्या में नौकरी देने का झूठा-सच्चा वादा करके चुनाव मैदान में हैं। इन तीनों राज्यों में आप के लड़ने का सीधा मकसद भाजपा को फायदा पहुंचाना दिख रहा है। इसलिए चुनाव से पहले कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, एनसीपी और तृणमूल कांग्रेस इन चारों को इस सिलसिले में केजरीवाल से बात करनी चाहिए। अगर वे चुनाव मैदान से नहीं हटते हैं या उनसे तालमेल नहीं होता है तो विपक्ष को बड़ा झटका लगेगा।
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