
उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में गिनी-चुनी सीटें ही ऐसी हैं, जिन पर नरेंद्र मोदी की लहर के बावजूद भाजपा चुनाव नहीं जीत सकी है। सोनिया गांधी की रायबरेली सीट ऐसी सीटों में शामिल हैं। ऐसी ही एक आजमगढ़ की भी है, जहां भाजपा न 2014 में जीत पाई थी और न 2019 में जीत पाई। मोदी की लहर वाले पहले चुनाव में आजमगढ़ से मुलायम सिंह यादव जीते थे और 2019 में अखिलेश यादव लड़े और जीते। रामपुर सीट पर 2014 की लहर में कड़े मुकाबले में भाजपा 23 हजार वोट से यह सीट जीती थी लेकिन 2019 में सपा के आजम खान चुनाव जीते। इस साल हुए चुनाव में अखिलेश और आजम खान दोनों विधायक बन गए हैं और उन्होंने लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया। अब इन दोनों सीटों पर 23 जून को मतदान होना है। भाजपा इन सीटों पर जीत कर विजय अभियान जारी रखना चाहेगी। दो साल बाद होने वाले आम चुनावों के लिहाज से भी यह भाजपा के लिए जरूरी होगा।
इन दोनों सीटों पर समाजवादी पार्टी के लिए भी प्रतिष्ठा की लड़ाई होगी। पहले माना जा रहा था कि समाजवादी पार्टी की ओर से अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव आजमगढ़ सीट से लड़ सकती हैं। यह बड़ा सवाल है कि मुलायम परिवार का कोई सदस्य इस सीट से चुनाव लड़ेगा या बाहर का उम्मीदवार होगा। यह भी सवाल है कि कहीं भाजपा तो मुलायम परिवार के किसी सदस्य को चुनाव में नहीं उतार देगी? रामपुर सीट पर ज्यादा सस्पेंस है। आजम खान के कहने पर कपिल सिब्बल को राज्यसभा भेज कर अखिलेश ने उनका गुस्सा कुछ कम किया है। फिर भी देखने वाली बात होगी कि वे अपने परिवार के किसी सदस्य को लड़ाते हैं या भाजपा, ओवैसी में से किसी की मदद करते हैं? ये दोनों सीटें मुस्लिम बहुल हैं। सो, भाजपा के ध्रुवीकरण के एजेंडे और सपा के एम-वाई समीकरण की परीक्षा भी इन दोनों सीटों पर होगी।