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राज्यसभा में क्या विपक्ष रोक सकता है बिल को?

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विपक्षी पार्टियों से अपील की है कि वे दिल्ली सरकार के अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले का अधिकार राज्य सरकार से छीनने वाले केंद्र सरकार के अध्यादेश को राज्यसभा में रोकें, उसे कानून नहीं बनने दें। पर सवाल है कि क्या केजरीवाल की अपील पर विपक्ष एकजुट होगा और अगर हो भी गया तो क्या बिल को रोक पाएगा? एक सवाल यह भी है कि क्या संसद के शीतकालीन सत्र में यह विधेयक सरकार और विपक्ष के बीच शक्ति प्रदर्शन का कारण बनेगा और क्या इस पर कृषि कानूनों की तरह टकराव हो सकता है?

राज्यसभा का अंकगणित पूरी तरह से तो केंद्र सरकार के पक्ष में नहीं है, फिर भी मुद्दों के आधार पर सरकार का समर्थन करने वाली पार्टियों को मिला कर सरकार बहुमत के आंकड़े तक पहुंचती है। अगर उसमें कुछ कमी रह जाती है तो वह साम, दाम, दंड, भेद के किसी उपाय से पूरा किया जाता है। विपक्ष के कुछ सांसद रहस्यमय तरीके से गैरहाजिर हो जाते हैं और अगर उससे भी काम नहीं चलता है तो केंद्रीय कृषि कानूनों से जुड़े विधेयक को पास कराने का तरीका भी है, जिसमें विपक्ष के सांसदों को मार्शल से बाहर करा दिया गया था। इसमें से कौन सा तरीका सरकार इस्तेमाल करेगी और विपक्ष क्या करेगा, यह सत्र के समय ही पता चलेगा।

बहरहाल, 245 सदस्यों की राज्यसभा में भाजपा के 93 सांसद हैं। अगर सहयोगी पार्टियों की बात करें तो अन्ना डीएमके के चार, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया, असम गण परिषद, एनपीपी, एसडीएफ और यूपीपी के एक-एक सांसद हैं। इसके अलावा पांच मनोनीत और तीन निर्दलीय सांसद हैं। कुल मिला कर यह संख्या 110 की बनती है। इसके बाद भी सरकार को बहुमत के लिए 13 सांसदों की जरूरत होगी। मुद्दों के आधार पर सरकार को बीजू जनता दल और वाईएसआर कांग्रेस का समर्थन मिलता है, जिनके नौ-नौ सांसद हैं। इस तरह सरकार के पास 128 सांसदों का समर्थन हो जाता है, जो बहुमत से ज्यादा है। बसपा और जेडीएस के भी दो सांसद हैं, जिनके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है। कांग्रेस, एनसीपी आदि के भी एकाध सांसद गाहे-बगाहे गैरहाजिर हो जाते हैं। सो, आंकड़े तो सरकार के पक्ष में हैं, लेकिन अगर विपक्ष एकजुट हुआ तो बिल पर वोटिंग दिलचस्प होगी।

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