
केंद्र सरकार ने अखिल भारतीय सेवाओं- भारतीय प्रशासनिक सेवा यानी आईएएस, भारतीय पुलिस सेवा यानी आईपीएस और भारतीय वन सेवा यानी आईएफएस काडर को पूरी तरह से अपने कंट्रोल में लेने का नियम बनाया है। केंद्र सरकार ने इन तीनों काडर को कंट्रोल करने और इन सेवाओं के अधिकारियों की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से जुड़े नियमों में बदलाव किया है और उसका मसौदा राज्यों को भेजा है। केंद्र ने राज्यों से इस पर 25 जनवरी तक उनकी राय मांगी है। कई राज्यों ने इसका विरोध किया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री को दो चिट्ठी लिखी है। विपक्षी शासन वाले राज्यों के अलावा भाजपा और उसकी सहयोगियों की कम से कम तीन राज्य सरकारों- मध्य प्रदेश, बिहार और मेघालय ने भी इस पर आपत्ति की है। Center All India Service
ऐसा नहीं लग रहा है कि केंद्र सरकार राज्यों के विरोध को संज्ञान में लेगी। सरकार भले कह रही है कि राज्यों से प्रतिनियुक्ति पर कम अधिकारी आ रहे हैं इसलिए सरकार के पास अधिकारियों की कमी हो गई है। लेकिन यह कोई कारण नहीं है। क्योंकि केंद्र के पास इतने अधिकारी हैं कि उनके लिए काम नहीं है। सचिव स्तर में प्रमोशन के बाद भी अधिकारियों को अतिरिक्त सचिवों वाले काम दिए गए हैं।
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असल में केंद्र ने पश्चिम बंगाल में पिछले दिनों हुई घटना के बाद सोच समझ कर यह फैसला किया है। ध्यान रहे केंद्र ने पश्चिम बंगाल के दो पुलिस अधिकारियों को केंद्र की प्रतिनियुक्ति पर बुलाया लेकिन राज्य सरकार ने उन्हें नहीं आने दिया। उसी का बदला लेने के लिए समूचे अखिल भारतीय सेवा के लिए नियम बदले जा रहे हैं। अगर यह नियम लागू हुआ तो केंद्र सरकार मनमाने तरीके से किसी अधिकारी को केंद्र की प्रतिनियुक्ति पर आने के लिए मजबूर कर सकेगी। अगर केंद्र ने किसी अधिकारी को चुन कर कह दिया कि उसे अमुक तारीख तक भारत सरकार की सेवा में योगदान देना है तो चाहे उस अधिकारी की मर्जी हो या नहीं और राज्य सरकार उसे रिलीज करे या नहीं, राज्य में उसकी सेवा खत्म हो जाएगी। वह केंद्र की ओर से तय की तारीख को स्वतः रिलीज्ड माना जाएगा।