केंद्र सरकार ने मजदूरों को उनके गृह राज्य ले जाने के लिए चलाई जा रही श्रमिक स्पेशल ट्रेनों पर नया कंफ्यूजन पैदा कर दिया है। किराए से लेकर किराया वसूलने और मजदूरों को पास जारी करने और ट्रेनों की उपलब्धता को लेकर पहले से बहुत कंफ्यूजन था और अब केंद्र ने कहा है कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाने के लिए रेलवे को संबंधित राज्यों यानी जिस राज्य में ट्रेन को पहुंचना है उसकी सरकार से मंजूरी लेने की जरूरत नहीं है। हालांकि खुद सरकार यह भी कह रही है कि राज्य उसे मजदूरों की सूची उपलब्ध कराएं। मंगलवार को दिन में केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला की एक चिट्ठी सामने आई, जो उन्होंने राज्यों को लिखी थी। इसमें उन्होंने लिखा था कि रेलवे और राज्य सरकारें आपस में तालमेल करके ज्यादा ट्रेनें चलाएं।
एक तरफ तालमेल की बात कही जा रही है और राज्यों से मजदूरों की सूची मांगी जा रही है और दूसरी ओर कहा जा रहा है कि ट्रेन चलाने के लिए मंजूरी की जरूरत नहीं है। इसका क्या मतलब हो सकता है। राज्यों की मंजूरी के बगैर ट्रेन चलाई गई तो ज्यादा अव्यवस्था फैलेगी। आखिर जब ट्रेन किसी राज्य में पहुंचेगी तो वहां क्वरैंटाइन की व्यवस्था उस राज्य को करनी है या लोगों को आगे कहीं जाना है तो उसे पहुंचाने के लिए बसों की व्यवस्था भी राज्यों को करनी होगी। स्टेशन पर राज्यों को ही मजदूरों की जांच की व्यवस्था करनी है। यह सब कैसे होगा, जब राज्यों को पता नहीं होगा कि कब स्पेशल ट्रेन चल रही है और कब पहुंच रही है? इसके बारे में राज्यों को तो पहले से सूचना देनी ही होगी कि वहां कितनी विशेष ट्रेनें पहुंचने वाली हैं। केंद्र के इस फैसले से ऐसा लग रहा है कि उसे राज्यों की ‘मंजूरी’ लेना अपनी शान के खिलाफ लगा इसलिए अब राज्यों को सिर्फ सूचना दी जाएगी।