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क्या अब भूमि पूजन होना चाहिए?

ByNI Political,
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क्या अब भूमि पूजन होना चाहिए?
संसद भवन की नई इमारत के भूमि पूजन का मामला अब राजनीतिक और कानूनी नैतिकता का मामला बन गया है। कानूनी रूप से सरकार को देश की सर्वोच्च अदालत ने इजाजत दे दी है कि वह भूमि पूजन करे। लेकिन इसके लिए सरकार को अदालत से यह वादा करना पड़ा कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के लिए कोई तोड़फोड़ नहीं की जाएगी, न कोई पेड़ काटे जाएंगे और न किसी किस्म की निर्माण होगा। सरकार के इस वादे के बाद सर्वोच्च अदालत ने कहा कि भूमि पूजन कर लीजिए। हालांकि उससे पहले अदालत ने इस पूरे मामले को लेकर खुल कर नाराजगी भी जाहिर की। तभी सवाल है कि क्या अब इसे टाल नहीं दिया जाना चाहिए? क्या ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री को भूमि पूजन करना चाहिए? जब अदालत ने कहा है कि जब तक इस मामले में दायर सारी याचिकाओं पर फैसला नहीं आ जाता है तब तक निर्माण कार्य नहीं शुरू हो सकता है तो क्या भूमि पूजन के लिए भी फैसला आने का इंतजार नहीं करना चाहिए? आखिर संसद की नई इमारत का निर्माण कोई कोरोना वैक्सीन की तरह इमरजेंसी का मामला तो है नहीं कि उसके लिए एक-एक दिन कीमती है! असल में भूमि पूजन अब नैतिकता का मामला इसलिए बन गया है कि अगर खुद न खास्ता सुप्रीम कोर्ट ने प्रोजेक्ट रोक दिया तो क्या होगा? क्या यह प्रधानमंत्री और पूरी सरकार के लिए शर्मिंदगी का कारण नहीं बन जाएगा कि सरकार ने इतनी महत्वाकांक्षी योजना बनाई, कोरोना वायरस की महामारी में सारी योजनाएं टल गईं फिर भी इस पर अमल का फैसला किया, प्रधानमंत्री ने भूमि पूजन किया और उसके बाद परियोजना पर रोक लग गई! ध्यान रहे इस परियोजना को लेकर दायर याचिका में कई तरह की आपत्तियां हैं। जमीन का इस्तेमाल बदलने में मनमानी से लेकर पर्यावरण और कंसल्टेंट चुनने में गड़बड़ी तक कई किस्म के आरोप हैं। अभी यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या होगा। हो सकता है कि अदालत का फैसला सरकार के पक्ष में हो और वह सरकार को निर्माण कार्य शुरू करने की इजाजत दे दे। लेकिन अभी अगर सरकार इसका भूमि पूजन कर देती है तो अदालत का फैसला भी सवालों के घेरे में रहेगे। लोगों को यह कहने का मौका मिलेगा कि सरकार को पहले से पता था कि क्या फैसला आना है इसलिए प्रधानमंत्री ने भूमि पूजन पहले ही कर दिया था। यह एक तरफ देश की कार्यपालिका के लिए प्रतिष्ठा का मामला है तो दूसरी ओर न्यायपालिका के सम्मान और उसकी निष्पक्षता की रक्षा का भी मामला है।
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