स्वर्गीय रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने 12, जनपथ का बंगला खाली कर दिया है लेकिन बंगले को लेकर चल रही राजनीति अभी खत्म नहीं हुई है। उन्होंने बंगला खाली करने से पहले इस बात की पर्याप्त चर्चा करा दी कि उनके पिता और दलित नेता के साथ अच्छा नहीं हुआ। अब उनकी पार्टी ने इस मामले का रुख अपने चाचा और केंद्र सरकार के मंत्री पशुपति पारस की तरफ मोड़ दिया है। बिहार में इस बात की चर्चा है कि पशुपति पारस चाहते तो बंगला बचा सकते थे लेकिन उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया क्योंकि उनके रामविलास पासवान की विरासत से कोई मतलब नहीं है।
ध्यान रहे पशुपति पारस लोजपा के चार अन्य सांसदों को लेकर अलग हो गए। उनको नीतीश कुमार का समर्थन है और उसी समर्थन से वे केंद्र में मंत्री बने हैं। अलग होने के बाद से बिहार में पासवान के समर्थक कोर वोट को लेकर चाचा-भतीजे में खींचतान चल रही है। इसे खत्म करके चिराग को रामविलास पासवान का उनका इकलौता उत्तराधिकारी बनाने के लिए यह प्रचार हुआ है कि पारस बंगला बचा सकते थे। यह बात को लोगों को समझ में भी आ रही है। पारस केंद्र सरकार में मंत्री हैं और वे चाहते तो 12, जनपथ का बंगला उनको आवंटित हो जाता। अगर वे अपने नाम से बूंगला आवंटित करा लेते तो पासवान का परिवार और उनके करीबी लोग पहले की तरह उस बंगले में रह सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इस प्रचार का उनको बिहार की राजनीति में नुकसान होगा।
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