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कृषि कानूनों की तुलना ठीक नहीं

ByNI Political,
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कृषि कानूनों की तुलना ठीक नहीं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए इस बात का जवाब दिया कि किसी किसान ने कृषि कानूनों में सुधार की मांग नहीं की थी। असल में सरकार की आलोचना में हर जगह यह बात कही जा रही है कि सरकार ने अपनी मनमर्जी से कानून बनाए, किसी ने इसकी मांग नहीं की थी। प्रधानमंत्री ने इस आलोचना को स्वीकार कर लिया। उन्होंने यह मान लिया कि किसी ने इन कानूनों की मांग नहीं की थी। लेकिन उसके बाद उन्होंने इसकी तुलना दहेज कानूनों और बाल विवाह कानूनों से कर दी। यह तुलना ठीक नहीं है। क्योंकि दहेज विरोधी कानून और बाल विवाह कानून समाज सुधार के लंबे आंदोलन के बाद बने थे। ऐसा नहीं था कि सरकारों ने अपने मन से दहेज विरोधी या बाल विवाह रोकने वाले कानून बनाए थे। बाल विवाह रोकने का कानून लंबे संघर्ष के बाद बना था। अंग्रेज सरकार ने 1929 में इसे रोकने का कानून बनाया था, लेकिन उससे पहल एक सौ साल तक आंदोलन चला था। ईश्वर चंद विद्यासागर ने विधवा विवाह की मंजूरी देने और बाल विवाह व बहु विवाह रोकने के लिए आंदोलन किया था। 1891 में अपने निधन से पहले तक वे लगातार इन मुद्दों पर आंदोलन करते रहे थे। इसी तरह समाज सुधार के लंबे आंदोलन के बाद दहेज विरोधी कानून बना था और समय के साथ उसे और सख्त बनाया गया। ‘स्त्री संघर्ष का इतिहास’ अगर कोई पढ़े तो उसे अंदाजा हो गया कि घरेलू हिंसा, दहेज हिंसा आदि पर रोक लगाने के लिए स्त्रियों ने पिछली सदी के छठे-सातवें दशक में कितने आंदोलन किए। प्रधानमंत्री के गृह राज्य गुजरात में भी यह आंदोलन हुआ और महाराष्ट्र में भी। हैदराबाद में प्रगतिशील महिलाओं का आंदोलन हुआ। दिल्ली में दहेज हत्या के विरोध में लोग सड़कों पर उतरे और तब एक सख्त कानून अस्तित्व में आया। वैसे कानून तो 1961 में ही बन गया था पर उसके बाद तीन दशक में इसे और सख्त बनाया गया।
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