प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस की वैक्सीन को लेकर एक शंका का समाधान किया। उन्होंने कहा कि पहले चरण में जिन तीन करोड़ लोगों को वैक्सीन लगनी है, उनका पैसा केंद्र सरकार देगी। सो, अब सवाल है कि बाकी 135 करोड़ लोगों की वैक्सीन का क्या होगा? क्या यह राज्यों की जिम्मेदारी होगी कि वे अपनी पूरी आबादी को टीका लगवाएं? सोचें, इसका क्या मतलब है? देश में स्वास्थ्यकर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स की संख्या तीन करोड़ है। राज्यों के हिसाब से देखें तो कुछ ही राज्य होंगे, जहां इनकी संख्या 10 लाख से ज्यादा होगी। दिल्ली में तो यह संख्या तीन लाख के करीब है। यानी तीन लाख लोगों को केंद्र सरकार टीका लगवाएगी और बाकी एक करोड़ 97 लाख की जिम्मेदारी दिल्ली सरकार की होगी। ऐसे में क्या दिल्ली सरकार ही उन तीन लाख लोगों को भी टीका नहीं लगवा सकती थी?
हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि पहले चरण के बाद प्राथमिकता समूह वाले 27 करोड़ लोगों के लिए टीका खरीदने का ठेका कैसे दिया जाएगा? क्या केंद्र सरकार खुद खरीदेगी और राज्यों को भेजेगी या राज्यों से कहा जाएगा कि जिस तरह से पहले चरण के लिए केंद्र सरकार ने टीका खरीदा है वैसे ही वे भी टीका खरीद लें। केंद्र ने कोवीशील्ड और कोवैक्सीन को मंजूरी दे दी ही और राज्य इनकी सीधी खरीद कर सकते हैं! सीरम इंस्टीच्यूट में बने कोवीशील्ड के एक डोज की कीमत दो सौ रुपए है लेकिन अभी यह पता नहीं है कि सरकारी कंपनी में बन रही कोवैक्सीन के एक डोज की कीमत क्या होगी। निजी कंपनियों को वैक्सीन की बिक्री का अधिकार कब से मिलेगा और उनके लिए क्या कीमत होगी यह भी तय नहीं है। सरकार को जल्दी से जल्दी वैक्सीन की कीमत, खरीद में राज्यों की हिस्सेदारी, निजी खरीद, वैक्सीन की आपूर्ति आदि के बारे में स्पष्टता लानी चाहिए। यह इसलिए भी जरूरी है कि पहला चरण खत्म होने के बाद जब 27 करोड़ लोगों के लिए वैक्सीनेशन शुरू होगा तो बहुत ज्यादा सेंटर बनाने होंगे और आपूर्ति बढ़ानी होगी। चूंकि 28 दिन के बाद फिर दूसरी डोज लगनी है इसलिए भी सरकार को अभी से तैयारी करनी होगी।