विपक्षी पार्टियों के बीच कुछ दिलचस्प राजनीति होती दिख रही है। कांग्रेस की नई और पुरानी सहयोगी पार्टियां कुछ अलग राजनीतिक रास्ते पर चल रही हैं। अब तक ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, के चंद्रशेखर राव, अखिलेश यादव जैसे पुराने सहयोगी आपस में मिल रहे थे और अपनी राजनीति कर रहे थे। लेकिन अब कांग्रेस की मौजूदा सहयोगी पार्टियां भी ऐसा कर रही हैं। पिछले दिनों झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन दिल्ली आए तो कांग्रेस नेताओं से मिलने की बजाय वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के बेटे के शादी समारोह में शामिल हुए और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मिल कर देश और प्रदेश की राजनीति पर चर्चा की।
कांग्रेस के नेता इसका अर्थ निकाल ही रहे थे कि बिहार में कांग्रेस की सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल के नेता और राज्य के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने रांची जाकर हेमंत सोरेन से मुलाकात की और फिर दिल्ली आकर तेजस्वी भी अरविंद केजरीवाल से मिले। तेजस्वी ने भी दिल्ली में कांग्रेस नेताओं से मिलने की जरूरत नहीं समझी। अब कांग्रेस नेता इस सोच में हैं कि आखिर हेमंत और तेजस्वी के बीच क्या बात हुई है और इन दोनों नेताओं ने केजरीवाल से क्या बात की है? क्या ये दोनों पार्टियां भी कांग्रेस पर दबाव डालने की राजनीति कर रही हैं या गैर भाजपा और गैर कांग्रेस तीसरे मोर्चे की तैयारी कर रही हैं? ध्यान रहे बिहार में तो राजद और जदयू को अपने दम पर बहुमत है लेकिन झारखंड में तो हेमंत सोरेन की सरकार पूरी तरह से कांग्रेस पर निर्भर है। फिर भी वे कांग्रेस के कोई तवज्जो नहीं दे रहे हैं। यह कांग्रेस के मौजूदा नेतृत्व के लिए बड़ा सवाल है।