कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के वोट बैंक पर नजर गड़ाए हुए है। असल में पारंपरिक रूप से वह कांग्रेस का ही वोट है, जो बसपा के पास चला गया है और अब बसपा से भी अलग होकर इधर उधर बिखर रहा है क्योंकि बसपा प्रमुख मायावती राजनीति में बहुत सक्रिय नहीं हैं। वे एक अनिच्छुक राजनेता के तौर पर काम कर रही हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में तो कहीं लगा ही नहीं कि पार्टी चुनाव लड़ रही है। इसका नतीजा यह हुआ है कि बसपा जैसी बड़ी पार्टी 403 विधानसभा सीटों में से एक सीट पर जीत पाई। सोचें, जिस पार्टी के लोकसभा में 10 सांसद हैं वह विधानसभा की एक सीट जीत पाई।
बहरहाल, बसपा को जिस वोट ने सत्ता दिलाई थी वह दलित, ब्राह्मण और मुस्लिम का वोट था। पारंपरिक रूप से यह कांग्रेस का वोट रहा है। लेकिन बसपा के कमजोर होने से दलित वोट का कुछ हिस्सा भाजपा की ओर गया है तो मुस्लिम लगभग पूरी तरह से समाजवादी पार्टी के साथ और ब्राह्मण पूरी तरह से भाजपा के साथ गए हैं। कांग्रेस को ये तीनों वोट वापस हासिल करने हैं। पार्टी ने नए प्रदेश अध्यक्ष और छह प्रांतीय अध्यक्षों के जरिए ऐसा समीकरण बनाया है, जिससे इस वोट को हासिल करने में मदद मिले।
कांग्रस ने बसपा में रहे आक्रामक दलित नेता बृजलाल खाबरी को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। उनके साथ साथ बसपा में रहे मुस्लिम नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी को पश्चिमी जोन का प्रांतीय अध्यक्ष बनाया है। बसपा के ब्राह्मण चेहरों में से एक रहे पूर्व मंत्री नकुल दुबे को अवध जोन का अध्यक्ष बनाया है। इस तरह बसपा के तीन नेताओं को कांग्रेस ने बड़ी जिम्मेदारी दी है और ये तीन नेता दलित, मुस्लिम व ब्राह्मण समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनके जरिए कांग्रेस जातीय समीकरण साधने का प्रयास कर रही है। कांग्रेस ने तीन और प्रांतीय अध्यक्ष बनाए हैं जो ब्राह्मण, भूमिहार और कुर्मी जाति से आते हैं।
बसपा के वोट पर कांग्रेस की नजर
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