कांग्रेस पार्टी ने हरियाणा की राजनीति की कमान लगभग पूरी तरह से भूपेंदर सिंह हुड्डा के हाथ में सौंप दी है। लेकिन इसके साथ ही पार्टी आलाकमान राज्य की राजनीति में संतुलन बनाने का काम भी कर रहा है। सबसे पहले रणदीप सिंह सुरजेवाला को संतुलित किया गया। हुड्डा को प्रदेश की कमान सौंपने के बाद सुरजेवाला को राजस्थान से राज्यसभा का सदस्य बनाया गया लेकिन साथ ही मीडिया प्रभारी के पद से हटा दिया गया। अब वे पार्टी के महासचिव हैं और कर्नाटक के प्रभारी हैं। मीडिया प्रभारी के पद से हटते ही उनका चेहरा मीडिया से गायब हो गया है। हुड्डा खेमा इससे संतुष्ट है।
सुरजेवाला को संतुलित करने के बाद पार्टी ने कुमारी शैलजा को कांग्रेस कार्य समिति का सदस्य बनाया। ध्यान रहे वे पार्टी का दलित चेहरा हैं और बरसों तक कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष थी। उनकी राज्यसभा सीट पिछले चुनाव में हुड्डा ने अपने बेटे के लिए ले ली थी। उनको कार्य समिति का सदस्य बना कर पार्टी ने परफेक्ट संतुलन बनाया है। हुड्डा विधायक दल के नेता हैं और उनके करीबी उदयभान प्रदेश अध्यक्ष हैं। दूसरे बड़े नेता को पार्टी ने राष्ट्रीय महासचिव बनाया है और तीसरे नेता को कार्य समिति में मनोनीत किया है। अब देखना है कि यह संतुलन कितने समय तक बना रहता है और अगले चुनाव में कितना कारगर होता है।
ईपीएस के हाथ में अन्ना डीएमके
तमिलनाडु में मुख्य विपक्षी अन्ना डीएमके का विवाद फिर शुरू हो गया है और माना जा रहा है कि इस बार यह विवाद निर्णायक होगा। जयललिता के निधन के बाद पार्टी की कमान संभाल रहे दोनों नेता ओ पनीरसेल्वम और ई पलानीस्वामी अलग अलग हो गए हैं। पलानीस्वामी खेमे ने पार्टी पर कब्जा कर लिया है। पार्टी की जनरल कौंसिल की पिछली बैठक में ही कोऑर्डिनेटर और ज्वाइंट कोऑर्डिनेटर का पद समाप्त कर दिया गया और पनीरसेल्वम की सारी शक्तियां छीन ली गई थीं। जनरल कौंसिल की अगली बैठक 11 जुलाई को होनी है लेकिन तब तक सारी शक्ति ईपीएस यानी पलानीस्वामी के हाथ में है।
दिलचस्प यह है कि दोनों खेमों के इस झगड़े के बीच 26 जून को वीके शशिकला ने प्रदेश की यात्रा शुरू कर दी। उन्होंने एक बड़ा कार्यक्रम किया है, जिसे अन्ना डीएमके कार्यकर्ताओं ने समर्थन दिया। ध्यान रहे पिछले चुनाव से ठीक पहले वे बेंगलुरू जेल से रिहा होकर लौटी थीं और तब सूत्रों के हवाले से खबर आई थी कि भाजपा ने उनको राजनीति से दूर रहने को कहा था। भाजपा ने ही ओपीएस और ईपीएस खेमे में सुलह कराई थी। अब दोनों खेमे बिखर गए हैं और शशिकला राजनीति में सक्रिय हो गई हैं तो इसके पीछे भाजपा का खेल माना जा रहा है। असल में भाजपा की नजर अन्ना डीएमके पर है। लेकिन उसे कंट्रोल करने के लिए भाजपा के पास कोई चेहरा नहीं है। शशिकला के जरिए यह काम हो सकता है। लेकिन मुश्किल यह है कि उनका चेहरा बहुत बदनाम है। फिर भी भाजपा कुछ न कुछ दांव चल रही है। 11 जुलाई के बाद पता चलेगा कि राज्य में क्या खेल हो रहा है और भाजपा उस खेल में कहां तक शामिल है।
हरियाणा में संतुलन बना रही है कांग्रेस
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