एक तरफ भारतीय जनता पार्टी किसी तरह से राज्यसभा में अपने सांसदों की संख्या बढ़ाने के प्रयास में लगी है। इसके लिए वह वहां भी उम्मीदवार उतार रही है, जहां उसके जीतने की संभावना नहीं है या जहां वह क्रास वोटिंग करा कर ही जीत सकती है। दूसरी ओर कांग्रेस ऐसी सीटों पर भी अपने उम्मीदवार नहीं उतार रही है, जहां वह जीत सकती है। वह आगे की चुनावी तालमेल की चिंता में समझौते कर रही है। अगर उसने पश्चिम बंगाल में समझौता नहीं किया होता तो वहां उसको एक सीट मिल जाती। जैसे पिछली बार तृणमूल के समर्थन से कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी राज्यसभा में गए वैसे ही इस बार कांग्रेस की पुरानी नेता और पूर्व स्पीकर मीरा कुमार उच्च सदन में जा सकती थीं।
तृणमूल कांग्रेस की नेता और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कांग्रेस को इसका प्रस्ताव दिया था। कहा जा रहा है कि उन्होंने अरसे बाद कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से बात की थी और मीरा कुमार का नामांकन कराने को कहा था। पर प्रदेश कमेटी के दबाव में कांग्रेस ने सीट सीपीएम के लिए छोड़ने का फैसला किया। ध्यान रहे राज्य में कांग्रेस के 45 विधायक हैं और समूचे लेफ्ट मोर्चा के पास सिर्फ 28 विधायक हैं। फिर भी कांग्रेस ने सीपीएम के बिकास रंजन भट्टाचार्य को समर्थन दे दिया।
कांग्रेस के इस रुख से नाराज ममता बनर्जी ने अपनी पार्टी के पूर्व विधायक और कारोबारी दिनेश बजाज को समर्थन देकर उन्हें उम्मीदवार बनवा दिया। इस वजह से कांग्रेस और सीपीएम दोनों की मुश्किलें बढ़ी हैं। पहले कहा जा रहा था कि सीपीएम अगर सीताराम येचुरी को भेजे तो कांग्रेस समर्थन देगी। पर सीपीएम ने येचुरी को भेजने से मना कर दिया फिर भी कांग्रेस ने अगले साल के चुनाव में लेफ्ट के साथ मिल कर लड़ने की योजना के तहत उसका समर्थन किया।
मीरा कुमार को भेज सकती थी कांग्रेस
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