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कांग्रेस पर भरोसा नहीं बन रहा

राहुल गांधी ने विपक्षी एकता के बारे में बहुत बातें कही हैं। उन्होंने कहा है कि विपक्ष को साथ आना होगा और साथ ही एक वैकल्पिक दृष्टि भी देश के सामने पेश करनी होगी। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि विपक्षी पार्टियां एक साथ आएंगी तो यह कांग्रेस की जिम्मेदारी होगी कि उनका सम्मान हो और वे गठबंधन में सहज महसूस करें। राहुल के ऐसा कहने का कारण यह है कि जब वह पावर में थी तब उसने किसी सहयोगी पार्टी की परवाह नहीं की थी। जैसे अभी भाजपा नहीं कर रही है। यह सही है 2009 में लालू प्रसाद अलग चुनाव लड़ गए थे लेकिन चुनाव के बाद कांग्रेस ने जिस तरह से उनकी पार्टी को सरकार से बाहर रखा उससे सहयोगियों के प्रति कांग्रेस का नजरिया जाहिर हुआ।

ध्यान रहे 2009 में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था, बल्कि उसकी सीटें कुछ बढ़ गई थीं। इसके बावजूद उसने ऐसा तांडव मचाया, जिसके सामने भाजपा का तांडव कुछ नहीं है। केंद्रीय एजेंसियों का वैसा दुरुपयोग पहले कभी नहीं हुआ, जैसा उस समय कांग्रेस ने किया। याद करें कैसे कांग्रेस की केंद्र सरकार ने तमिलनाडु में डीएमके नेताओं के घर पर छापे डलवाए और उसके नेताओं को जेल भिजवाया। झारखंड में कांग्रेस के समर्थन से ही मुख्यमंत्री बने मधु कोड़ा और उनकी सरकार के तमाम मंत्रियों को जेल में डाल दिया। आंध्र प्रदेश के नेता वाईएसआर रेड्डी की कमान में कांग्रेस के शानदार प्रदर्शन की वजह से 2004 और 2009 में कांग्रेस की सरकार बनी थी लेकिन वाईएसआर रेड्डी के हेलीकॉप्टर दुर्घटना में निधन के बाद विधायकों के तमाम समर्थन के बावजूद कांग्रेस ने उनके बेटे जगन मोहन रेड्डी को सीएम नहीं बनाया और उलटे उनको दस तरह के मुकदमे में फंसा कर जेल में डाल दिया।

समाजवादी पार्टी के 36 सांसद होने के बावजूद 2004 में कांग्रेस ने उसका समर्थन नहीं लिया और 2008 में परमाणु समझौते पर जब वामपंथी पार्टियां अलग हुईं तब भी सपा का समर्थन बाहर से लिया। उसके नेताओं के तमाम प्रयास के बावजूद सपा को सरकार में नहीं शामिल किया गया। कांग्रेस नेताओं के अहंकार और सहयोगियों के प्रति उपेक्षा भाव की वजह से ममता बनर्जी गठबंधन से अलग हुईं और उसके बाद सिलसिला शुरू हुआ तो एक एक करके ज्यादातर पार्टियां 2014 तक यूपीए से अलग हो गईं।

सो, सत्ता में रहने पर कांग्रेस ने सहयोगियों के साथ वैसा ही बरताव किया था, जैसा भाजपा कर रही है और केंद्रीय एजेंसियों का भी कमोबेश वैसा ही इस्तेमाल किया था, जैसा अभी हो रहा है। तभी राहुल गांधी को कहना पड़ा है कि यह उनकी पार्टी की जिम्मेदारी होगी कि गठबंधन में सभी प्रादेशिक पार्टियां सहज महसूस करें और उनका सम्मान हो। लेकिन कांग्रेस के पिछले इतिहास को देखते हुए प्रादेशिक पार्टियों का भरोसा नहीं बन रहा है। तभी कांग्रेस के साथ विपक्षी पार्टियों का तालमेल होगा लेकिन उसके लिए कांग्रेस को बहुत प्रयास करना होगा।

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