नया अध्यक्ष चुन देने के बाद भी कांग्रेस पार्टी अपनी स्थायी और ऐतिहासिक समस्या से नहीं निकल पाई है। कांग्रेस की स्थायी समस्या अनिर्णय की है। लंबे समय तक फैसले लटका कर रखना कांग्रेस की परंपरा रही है। तभी मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर कामकाज संभाल लेने के बावजूद उनकी नई टीम के बारे में कोई फैसला नहीं हुआ है। उन्होंने अध्यक्ष बनने के बाद एक एडहॉक यानी कामचलाऊ व्यवस्था बना दी। एक महीने से वही कामचलाऊ व्यवस्था चल रही है और कैसी चल रही है यह कर्नाटक से लेकर केरल और राजस्थान तक में दिख रही है।
भारतीय जनता पार्टी में भी जब जेपी नड्डा अध्यक्ष बने थे तो उन्होंने अपनी नई टीम का ऐलान नहीं किया था, बल्कि पुरानी अमित शाह वाली टीम ही काम करती रही थी और महीनों बाद उन्होंने कुछ चेहरे बदले थे। लेकिन खड़गे के साथ वह बात नहीं है। खड़गे ने टीम भंग कर दी है। सारे महासचिवों के इस्तीफे हो गए हैं। कांग्रेस कार्य समिति भी भंग हो गई है। उसकी जगह एक जंबो साइज की स्टीयरिंग कमेटी काम कर रही है और उसकी भी पहली बैठक चार दिसंबर को होनी है। उस बैठक में कांग्रेस के अधिवेशन, चुनाव, भारत जोड़ो यात्रा की प्रगति और सात दिसंबर से शुरू हो रहे संसद सत्र के बारे में विचार किया जाएगा।
कांग्रेस की तरफ से कोई संकेत नहीं है कि कब तक यह कामचलाऊ व्यवस्था चलेगी और कब नई टीम का गठन होगा। बेशक पुराने महासचिवों को ही रिपीट किया जाए लेकिन कांग्रेस को वह फैसला कर लेना चाहिए। अच्छा होता है कि नए अध्यक्ष अपने हिसाब से नए पदाधिकारी बनाते और राज्यों के प्रभार का भी नए सिरे से वितरण करते। इससे उनकी ऑथोरिटी मजबूत होती। लेकिन अगर वे ऐसा नहीं कर सकते हैं तब भी टीम का गठन हो जाना चाहिए।
हालांकि महासचिवों और अन्य पदाधिकारियों के इस्तीफे के बावजूद सब लोग पहले की तरह ही काम कर रहे हैं। जो जहां का प्रभारी था वहां के प्रभारी के रूप में काम कर रहा है। सोचें, फिर ऐसे प्रतीकात्मक इस्तीफे का क्या मतलब है? इस्तीफा लेकर महासचिव की ऑथोरिटी खत्म कर दी गई और उसे संबंधित राज्य का प्रभारी भी बनाए रखा गया। यह काम कांग्रेस ही कर सकती है। नया अध्यक्ष आने के बाद भी पार्टी के इस रवैए का नतीजा है कि हर जगह सारे कामकाज ठप्प हैं। दिल्ली और गुजरात दो राज्यों में चुनाव चल रहे हैं और पार्टी के पास कोई पूर्णकालिक सिस्टम नहीं है। सब कुछ एडहॉक तरीके से हो रहा है। खड़गे को नए पदाधिकारियों की नियुक्ति करनी है और कार्य समिति भी बनानी है। आधे पद 50 साल से कम उम्र के युवाओं को देने हैं। लेकिन इस फॉर्मूले के आधार पर नई टीम कब बनेगी, यह कोई नहीं बता सकता है।