कांग्रेस पार्टी में कुछ नेता ऐसा हैं, जो हमेशा बागी होने के लिए बैठे रहते हैं। वे मौके का इंतजार करते हैं। कहां पार्टी हारे तो नेतृत्व पर सवाल उठाया जाए। कांग्रेस में पहले ऐसा नहीं होता था। कांग्रेस में बड़ी से बड़ी हार के लिए पार्टी नेतृत्व पर सवाल नहीं उठाया जाता था। लेकिन केंद्रीय नेतृत्व के कमजोर होने के बाद से यह आम हो गया है कि ऐसे नेता भी, जो पार्टी या अपने पिता के नाम पर राजनीति कर रहे हैं, उनको भी चिंता होने लग रही है। सोचें, बिहार में पार्टी हार गई तो इसकी चिंता कार्ति चिदंबरम को हो रही है। सिर्फ उनकी एक सीट के चक्कर में उनके पिता पी चिदंबरम ने तमिलनाडु में पूरी पार्टी को दांव पर लगा दिया था। चिदंबरम पिता-पुत्र की वजह से कांग्रेस की जैसी फजीहत हुई है वैसी नहीं लगता कि किसी और नेता की वजह से हुई है।
ऐसे ही बिहार के बड़े कांग्रेस नेता तारिक अनवर ने भी कपिल सिब्बल का समर्थन किया है और बिहार की हार के लिए पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाए हैं। सवाल है सिब्बल का तो बिहार से कोई लेना-देना नहीं है तो उनका बनता है कि उन्हें जेनरल सवाल उठाए। लेकिन तारिक अनवर तो सीधे बिहार की चुनाव प्रक्रिया से जुड़े थे। टिकट बंटवारे से लेकर चुनाव प्रचार करने तक हर जगह वे सक्रिय थे तो उन्होंने क्या कर लिया। उनसे क्यों नहीं सवाल पूछा जाना चाहिए कि आप जैसे बड़े नेता के होते, आपके अपने चुनाव क्षेत्र में भी कांग्रेस की ऐसी दुर्दशा कैसे हुई? खुद भी पिछला लोकसभा चुनाव तारिक अनवर हार गए थे। वे क्या चाहते हैं कि राहुल गांधी उनको कटिहार में बैठ कर चुनाव जिताएं!
पिछले ही साल लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस ने कई राज्यों में अच्छा प्रदर्शन किया। महाराष्ट्र में उसका प्रदर्शन ठीक-ठाक रहा। उसने पहले जीती अपनी सीटें बचा लीं। इसी तरह झारखंड में तो कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन किया और झारखंड के इतिहास में सबसे ज्यादा सीटें जीतने का रिकार्ड बनाया। इससे पहले कांग्रेस 2009 में सबसे ज्यादा 11 सीटें जीती थी, जबकि इस बार पार्टी ने 16 सीटें जीती हैं। इसी तरह हरियाणा में कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा। उसके विधायकों की संख्या 15 से बढ़ कर 30 हो गईं। लेकिन इनके ऊपर चर्चा नहीं होगी। इनका श्रेय पार्टी नेतृत्व को नहीं दिया जाएगा।
बागी होने के लिए बैठे नेता ऐसे मौकों पर मुंह सील कर रहते हैं। चूंकि इसमें भी उनकी कोई भूमिका नहीं होती है। लेकिन जैसे ही उपचुनावों में कांग्रेस हारी या बिहार चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन खराब हुआ। वैसे ही बागी होने के लिए तैयार बैठे फन उठा कर खड़े हो गए। सब पूछ रहे हैं कि 2015 में 27 सीटें आई थीं इस बार 19 ही कैसे आईं! अरे भाई उससे पहले 2010 में पार्टी सभी 243 सीटों पर लड़ी थी और सिर्फ चार सीट जीती थी। लेकिन तब राहुल गांधी का नेतृत्व नहीं था इसलिए सवाल उठाने की जरूरत नहीं महसूस नहीं की गई। बात-बात पर बागी हो रहे ऐसे नेताओं की पहचान कर पार्टी को उनसे पिंड छुड़ाना चाहिए।