कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष के चुनाव का फैसला फिर नहीं कर पाई। पार्टी के पूर्णकालिक अध्यक्ष का मसला डेढ़ साल से लंबित है। राहुल गांधी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के बुरी तरह से हारने के बाद अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। तब से सोनिया गांधी बतौर कार्यकारी अध्यक्ष काम कर रही हैं। लेकिन इस दौरान उनकी सेहत और बिगड़ी साथ ही कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से उन्होंने पार्टी नेताओं को गतिविधियों से दूरी रखी। इसके बावजूद अध्यक्ष का फैसला नहीं हुआ।
पिछले साल अगस्त में कांग्रेस के 23 नेताओं ने खुल कर नाराजगी जताई और सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी तो डैमेज कंट्रोल के लिए आनन-फानन में कांग्रेस कार्य समिति की बैठक बुलाई और सोनिया गांधी ने कहा कि छह महीने में कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव हो जाना चाहिए। इसके बाद कांग्रेस के चुनाव प्राधिकरण ने चुनाव की प्रक्रिया शुरू कर दी। सोनिया की दी गई समय सीमा के मुताबिक जनवरी-फरवरी तक हर हाल में चुनाव हो जाना चाहिए था। पर जनवरी बीतने के समय कार्य समिति की बैठक हुई तो चुनाव जून तक टाल दिया गया। सवाल है कि जब राहुल गांधी को ही फिर से पार्टी अध्यक्ष बनाना है तो इतनी देरी क्यों की जा रही है?
कांग्रेस के जानकार सूत्रों का कहना है कि अप्रैल-मई में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद कर रही है और इसलिए चुनाव टाला गया है ताकि अच्छे प्रदर्शन के बाद राहुल गांधी की बतौर अध्यक्ष ताजपोशी होगी तो उनकी स्वीकार्यता ज्यादा होगी। लेकिन असल में यह कांग्रेस नेताओं का भ्रम है कि चुनाव जीतने से राहुल की स्वीकार्यता बनेगी। पिछले छह साल में देश में दो बार लोकसभा के साथ साथ कुल 39 चुनाव हुए हैं, जिनमें कांग्रेस सिर्फ नौ चुनाव जीत पाई है। इसके बावजूद राहुल की स्वीकार्यता बनी हुई है। पार्टी के सारे बड़े नेताओं और सभी मुख्यमंत्रियों ने कार्य समिति में खुल कर राहुल को अध्यक्ष बनाने की सिफारिश की।
इसलिए चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करके पार्टी की कमान संभालने की सोच बहुत अच्छी नहीं है। क्योंकि अभी राहुल अध्यक्ष बन कर पांच राज्यों में कांग्रेस को चुनाव लड़ाते तो उसका ज्यादा फायदा होगा। लगभग सभी राज्यों में कांग्रेस पार्टी में गुटबाजी है और चुनाव की अच्छी तैयारी नहीं हुई है। पूर्णकालिक अध्यक्ष और एक मजबूत टीम के साथ राहुल इस गुटबाजी को खत्म करा सकते थे और ज्यादा ऑथोरिटी के साथ गठबंधन से लेकर टिकट बंटवारे तक का फैसला कर सकते थे। लेकिन कांग्रेस के ही कुछ नेताओं ने इसे पटरी से उतार दिया। सोचें, अगर पांच राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा नहीं हो तो क्या होगा? क्या परिवार से बाहर के किसी नेता को अध्यक्ष बनाया जाएगा? कांग्रेस में कई नेता दबी जुबान में इसकी पैरवी कर रहे हैं कि कम से कम तीन साल के लिए किसी दूसरे व्यक्ति को अध्यक्ष बनाया जाए और लोकसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी कमान संभालें। इसका भी फैसला पांच राज्यों के चुनाव नतीजों से होगा।
कांग्रेस क्यों नहीं कर पा रही है फैसला?
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