कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में मल्लिकार्जुन खड़गे को चुनौती देने वाले शशि थरूर को 1,072 वोट मिले हैं। कुल 93 सौ के करीब वोट पड़े थे, जिसमें से 419 वोट अवैध हो गए और 7,897 वोट खड़गे को मिले। अगर संख्या देखें तो शशि थरूर को 1997 में शरद पवार को मिले वोट से ज्यादा वोट मिले हैं। हालांकि प्रतिशत के हिसाब से दोनों को 12 फीसदी के करीब वोट मिले हैं। यह भी मामूली बात नहीं है कि शशि थरूर ने 12 फीसदी वोट हासिल किया। सबको पता है कि वे शरद पवार की तरह लोकप्रिय नहीं हैं और न उनकी तरह साधन संपन्न हैं। साथ ही किसी एक राज्य या समाज की अस्मिता उनसे नहीं जुड़ी है। इसके बावजूद उन्होंने पवार के बराबर वोट हासिल किया।
तभी सवाल है कि थरूर को इतने वोट कैसे मिले? इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि सोनिया और राहुल गांधी ने उनका विरोध नहीं किया था। यह सबको पता है कि मल्लिकार्जुन खड़गे परिवार के आधिकारिक उम्मीदवार थे, भले इसकी घोषणा नहीं की गई थी। लेकिन जैसे खड़गे के आधिकारिक उम्मीदवार होने की घोषणा नहीं की गई थी उसी तरह थरूर के विरोधी होने की भी घोषणा नहीं की गई थी। उनके बारे में यह मैसेज बनने दिया गया था कि वे भी आलाकमान के ही उम्मीदवार हैं। एक स्तर पर उनकी प्रॉक्सी उम्मीदवार की छवि बनाई गई थी।
यहां तक कि जब कांग्रेस ने निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए यह निर्देश दिया कि पार्टी का कोई पदाधिकारी अगर किसी उम्मीदवार का समर्थन करना चाहता है तो उसे पद से इस्तीफा देना होगा, तब भी चुनाव के बीच शशि थरूर को रसायन व उर्वरक मंत्रालय की संसदीय समिति का अध्यक्ष बनाया गया। वे पहले आईटी मंत्रालय की कमेटी के अध्यक्ष थे लेकिन उस कमेटी का अध्यक्ष शिव सेना के एकनाथ शिंदे गुट के नेता को बना दिया गया। बदले में कांग्रेस को रसायन व उर्वरक मंत्रालय दिया गया, जिसे लेने में कांग्रेस शुरू में हिचक रही थी। लेकिन उसने अंत में इसे स्वीकार किया और थरूर को इसका चेयरमैन बनाया। इससे यह मैसेज गया कि थरूर भी आलाकमान के गुडबुक में हैं। सो, इस वजह से उनको कई जगह वोट मिल गए।
दूसरा कारण यह है कि हर राज्य में कुछ असंतुष्ट नेता हैं। प्रदेश में पार्टी के नेतृत्व से नाराज और असंतुष्ट नेताओं ने शशि थरूर को वोट किया। उनको आलाकमान या खड़गे से कोई शिकायत नहीं भी रही है तो प्रदेश के नेताओं की खुन्नस में उन्होंने थरूर को वोट किया। तीसरा कारण कांग्रेस के युवा डेलिगेट्स का है, जो सच में बदलाव चाहते थे। ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है लेकिन उन्होंने अपनी प्रतिबद्धता के तहत थरूर को वोट किया। पवार को जहां एकमुश्त मराठा वोट मिला था उस तरह एकमुश्त वोट थरूर को कहीं से नहीं मिला, बल्कि हर राज्य में थोड़े थोड़े वोट उनको मिले, जिससे वे एक हजार से ज्यादा वोट हासिल करने में कामयाब रहे।