यह भाजपा और कांग्रेस के मौजूदा नेतृत्व का भी फर्क है। भाजपा के पास पूर्णकालिक अध्यक्ष हैं पर पिछले सात महीने से संगठन में बदलाव की अटकलें ही लग रही हैं, जबकि कांग्रेस के पास अंतरिम अध्यक्ष हैं और उन्होंने पूरा संगठन बदल दिया। यह असली और आभासी ताकत का भी फर्क है। सोनिया गांधी भले कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष हैं पर सारी ताकत उनके हाथ में है। तभी उन्होंने नए अध्यक्ष के चुनाव का इंतजार भी नहीं किया और पार्टी का पूरा संगठन बदल दिया।
कांग्रेस के 23 बड़े नेताओं ने चिट्ठी लिख कर एकदम नीचे से लेकर ऊपर तक सभी पदों के लिए चुनाव कराने की मांग की थी। वे चाहते थे कि कांग्रेस कार्य समिति के सदस्यों का चुनाव हो। पर सोनिया गांधी ने उनकी सारी मांगों को खारिज कर दिया। पूरी कार्य समिति अपनी मर्जी से बना दी। आधे सदस्यों के चुनाव की भी जरूरत नहीं समझी गई। कार्य समिति से लेकर महासचिव और राज्यों के प्रभारी महासचिवों तक की जिम्मेदारी में बदलाव करके संगठन को नया रूप दिया गया। अब इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव होगा।
दूसरी ओर भाजपा ने जनवरी में जेपी नड्डा को अध्यक्ष चुन दिया और तब से ही अटकलें लगाई जा रही हैं कि पार्टी संगठन में फेरबदल होगा और भाजपा की नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी बनेगी। कभी किसी कारण से तो कभी किसी कारण से बदलाव टल रहा है। कहा जा रहा है कि पदाधिकारियों की सूची बन गई है। पर कभी उस पर प्रधानमंत्री की मंजूरी लेने की बात होती है तो केंद्रीय गृह मंत्री की तो कभी राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की। ऐसी कोई मंजूरी कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष को नहीं लेनी पड़ी है।
अध्यक्ष और अंतरिम अध्यक्ष का फर्क
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