मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस अध्यक्ष का कार्यभार संभाल लिया है। बुधवार को पार्टी मुख्यालय 24, अकबर रोड में सोनिया और राहुल गांधी दोनों की मौजूदगी में वे अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे और इसके साथ ही 137 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी के इतिहास का एक अहम हिस्सा बन गए। अब उनका नाम उस सूची में शामिल है, जिसमें महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल और जवाहर लाल नेहरू का नाम है। बहरहाल, उनके अध्यक्ष बनने के साथ ही यह चर्चा शुरू हो गई है कि 80 साल के खड़गे के साथ कामकाज संभालने के लिए पार्टी उपाध्यक्ष या कार्यकारी अध्यक्ष बनाएगी!
कांग्रेस में दोनों की परंपरा रही है। सोनिया गांधी के साथ राहुल गांधी ने बतौर उपाध्यक्ष काम किया है। पहले भी अर्जुन सिंह पार्टी के उपाध्यक्ष रहें हैं। जितेंद्र प्रसाद भी बतौर उपाध्यक्ष काम कर चुके हैं। पिछले कुछ समय से कांग्रेस ने राज्यों में अध्यक्ष के साथ कई कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का चलन शुरू किया है। हालांकि इसका क्या फायदा या नुकसान है इसका आकलन नहीं किया गया है। कांग्रेस के जानकार सूत्रों का कहना है कि खड़गे के साथ या तो एक या दो उपाध्यक्ष होंगे या कम से कम दो कार्यकारी अध्यक्ष होंगे। अगर ऐसा होता है तो यह कांग्रेस के लिए बहुत अच्छी बात नहीं होगी। इसकी बजाय महासचिव वाला सिस्टम बेहतर है।
खड़गे के नीचे उपाध्यक्ष या कार्यकारी अध्यक्ष बनाने के कई खतरे हैं। मुख्य खतरा तो यह है कि खड़गे की शक्तियां कम होंगी और उनके बारे में यह धारणा बनेगी कि पार्टी को उनकी क्षमताओं पर संदेह है। ऐसा हर प्रदेश में हो रहा है। जहां भी पार्टी ने अध्यक्ष के साथ कार्यकारी अध्यक्ष बनाए हैं वहां अध्यक्ष से अलग पावर सेंटर बने और अध्यक्ष के कमजोर होने की धारणा बनी। खड़गे 80 साल के हैं और बहुत फिट नहीं हैं इसलिए यह भी मैसेज बन सकता है कि उनको सिर्फ दिखावे के लिए पद पर बनाया गया है और असली काम कार्यकारी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष करेंगे। इसका नतीजा यह होगा कि पार्टी उनके बनने से जिस राजनीतिक फायदे की उम्मीद कर रही है वह नहीं हो पाएगा।
दूसरा खतरा यह है कि जितने उपाध्यक्ष और कार्यकारी अध्यक्ष बनेंगे उतने नए पावर सेंटर बनेंगे। कांग्रेस में पहले ही चार पावर सेंटर बन गए हैं। सोनिया गांधी भले अध्यक्ष पद छोड़ चुकी हैं लेकिन वे संसदीय दल की नेता हैं और आगे भी सक्रिय रहेंगी, कम से कम 2024 तक। राहुल गांधी सर्वोच्च नेता हैं और मुख्य पावर सेंटर हैं। प्रियंका गांधी वाड्रा का एक पावर सेंटर है और खड़गे का एक नया सेंटर गया है। अब अगर उपाध्यक्ष या कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाते हैं तो उनका पावर सेंटर बनेगा। अगर राष्ट्रीय स्तर पर नहीं बना तो वे जहां के प्रभारी बनेंगे वहां नया गुट बनेगा या वे जिस राज्य के नेता होंगे वहां उनका नया गुट बनेगा। कांग्रेस के लिए यह अच्छा नहीं होगा।