सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसए बोबडे रिटायर हो गए हैं। शुक्रवार को उनके कार्यकाल का आखिरी दिन था। उन्होंने आखिरी दिन एक बार फिर वह काम किया, जो पिछले साल मई में किया था। पिछले साल प्रवासी मजदूरों के पलायन के समय की कहानी हूबहू ऑक्सीजन की कमी के मामले में दोहराई गई। पिछले साल इसी समय पूरे देश में एक अभूतपूर्व त्रासदी हो रही थी। देश के ज्यादातर बड़े शहरों से प्रवासी मजदूरों का पलायन हो रहा था। आजादी के बाद पहली बार इतनी बडी संख्या में लोगों का पलायन हो रहा था। लोग चिलचिलाती धूप में अपने बच्चों और महिलाओं को लेकर पैदल चल रहे थे। तब देश की छह उच्च अदालतों में इस मसले पर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई हो रही थी। उच्च अदालतों ने इस पर बहुत सख्त रुख अख्तियार किया था और केंद्र से लेकर राज्यों की सरकारों तक को कठघऱे में खड़ा किया था।
उसी समय सुप्रीम कोर्ट ने सभी उच्च अदालतों से प्रवासी मजदूरों का मुद्दा अपने पास मंगा लिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सुनवाई की और राज्यों को कुछ निर्देश दिए। सर्वोच्च अदालतों ने राज्यों से सिर्फ इतना पूछा कि उनके यहां कितने मजदूर लौटे हैं, उनके आने-जाने का क्या साधन है और राज्य सरकारें उनके लिए क्या कर रही हैं। इस पर आगे सितंबर में सुनवाई की तारीख तय हुई। हैरानी की बात है कि महीनों तक कई राज्य सरकारों ने जवाब नहीं दिया। यह मामला अपनी मौत मर गया।
उसी तरह अदालत ने इस बार ऑक्सीजन की कमी का मुद्दा अपने यहां मंगा लिया। छह राज्यों में हाई कोर्ट इस पर सुनवाई कर रहे थे और केंद्र व राज्य सरकारों को कठघरे में खड़ा कर रहे थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर यह मामला सुना और केंद्र को नोटिस जारी करते हुए 27 अप्रैल तक सुनवाई टाल दी। सोचें, जहां अस्पातालों में घंटे-दो घंटे के ऑक्सीजन बचे थे और तत्काल कार्रवाई की जरूरत थी वहां चार दिन सुनवाई टालने से किसका भला होगा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट इस मामले को सुन सकते हैं और आदेश दे सकते हैं। लेकिन पिछले तीन दिन में यह मामला भी पटरी से उतरा है।
सुप्रीम कोर्ट में पिछले साल की कहानी
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