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संकट में सरकारी कंपनियां

ByNI Political,
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संकट में सरकारी कंपनियां
भारत में अभूतपूर्व आर्थिक संकट है। हालांकि ऐसा नहीं है कि कोरोना वायरस की वजह से ही यह संकट खड़ा हुआ है। कोराना का संक्रमण शुरू होने से पहले लगातार सात तिमाहियों में विकास दर गिरती जा रही थी। कोरोना के कारण इतना हुआ है कि उसके बाद विकास पूरी तरह से रूक गया है और माना जा रहा है कि यह माइनस में जाएगा। इसका असर सबके ऊपर हुआ है। पर ऐसा लग रहा है कि सबसे ज्यादा असर सरकारी कंपनियों के पर हुआ है। एक एक करके सरकारी कंपनियां दिवालिया होने की ओर बढ़ रही हैं।  खबर है कि भारतीय रेलवे के पास अपने कर्मचारियों का वेतन और रिटायर हो चुके कर्मचारियों को पेंशन देने के पैसे नहीं हैं। सोचें, क्या हाल है? छह साल से एक ऐसी सरकार चल रही है, जिसका दावा है कि उसने पहले हो रही सारी लूट, भ्रष्टचार बंद कर दिए हैं और सारी संस्थाओं के कामकाज को बेहतर कर दिया है और वास्तविक स्थिति यह है कि देश में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाली भारतीय रेलवे के पास वेतन देने के पैसे नहीं हैं। खबर है कि रेल मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय से मदद करने को कहा है ताकि उसके 15 लाख रिटायर कर्मचारियों को पेंशन दी जा सके। एयर इंडिया का संकट पहले से चल रहा था और सरकार पैसे देकर उसको बचा रही थी। अब कोरोना में दूसरे किसी भी एयरलाइंस के मुकाबले एयर इंडिया की हालत ज्यादा खराब हुई है। बिकने के लिए बाजार में खड़ी एयर इंडिया ने अपने हजारों कर्मचारियों को वेतनरहित छुट्टी पर भेजा है। उनसे कहा गया है कि उनकी नौकरी नहीं जाएगी पर उन्हें कंपनी वेतन भी नहीं दे सकती है। चूंकि एयर इंडिया का सिस्टम रेलवे से अलग है तो सरकार उसकी मदद करके पेंशन तो दिलवा देगी पर यह तय हो गया है कि हालात नहीं सुधरने वाले हैं। लगातार मुनाफा कमाने वाली भारत की महारत्न कंपनी ओएनजीसी पहली बार घाटे में गई है। सोचें, बनने के बाद पहली बार यह कंपनी घाटे में गई है और वह भी कोरोना की वजह से नहीं। कोरोना का संकट शुरू होने से पहले की तिमाही में यानी जनवरी से मार्च 2020 की तिमाही में ओएनजीसी को 3,098 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। पिछले साल इसी अवधि में यानी 2019 की जनवरी-मार्च की तिमाही में कंपनी को 4,240 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ था। ऐसा भी कहा जा रहा है कि ओएनजीसी के घाटे में जाने का मतलब है कि सरकार इसे भी बेचने की तैयारी में लग जाएगी।
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