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जांच में निगेटिव-पॉजिटिव का खेल

ByNI Political,
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जांच में निगेटिव-पॉजिटिव का खेल
सरकार ने बताया है कि बिना लक्षण वाले मरीजों में निगेटिव आने वालों की दोबारा जांच की गई तो उनमें से 15 फीसदी पॉजिटिव निकल गए। यह मंगलवार को आधिकारिक रूप से बताया गया है। इससे पहले इस बारे में मीडिया में खबरें आ रही थीं कि कई लोग पहली जांच में निगेटिव निकल रहे हैं और फिर बाद में उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आ जा रही है। कई जगह पॉजिटिव मरीज के एक या दो दिन बाद ही निगेटिव रिपोर्ट आने की भी खबर है। पर मंगलवार को दी गई जानकारी को ही देखें तो यह सवाल उठता है कि जब किसी में बीमारी का कोई लक्षण नहीं है और टेस्ट भी निगेटिव आ रही है तो उसकी दोबारा जांच की क्या जरूरत है? ध्यान रहे सरकार ने नियम बनाया है कि एंटीजन या एंटीबॉडी टेस्ट में अगर किसी लक्षण वाले मरीज की रिपोर्ट निगेटिव आती है तो उसकी दोबारा आरटी-पीसीआर से जांच होगी। यह बात तो समझ में आती है कि लक्षण वाला मरीज है और रिपोर्ट निगेटिव आई तो दोबारा जांच हो पर किसी में कोई लक्षण नहीं है और रिपोर्ट भी निगेटिव आ रही है तब भी दोबारा जांच किस मकसद से की जा रही है? क्या प्रयोग के तौर पर ऐसा किया जा रहा है? और अगर उसमें 15 फीसदी लोगों की रिपोर्ट बदल जा रही है तो फिर ऐसी पहली जांच का क्या मतलब है? निश्चित रूप से यह प्रयोग कम लोगों पर हुआ होगा पर सोचें अगर एंटीजन या एंटीबॉडी टेस्ट में निगेटिव रिपोर्ट लेकर बड़ी संख्या में बिना लक्षण वाले जो लोग बाहर घूम रहे हैं वे कितना कोरोना फैलाते होंगे? फिर तो ये जांच बंद करके सबकी आरटी-पीसीआर जांच ही होनी चाहिए! पर उस पर भी कम सवाल नहीं उठ रहे हैं। उसके भी पूरी तरह से सही होने की गारंटी कोई नहीं दे रहा है। तंजानिया की मिसाल इस मामले में दी जा सकती है। यह खबर मई की है पर अब भी बेकार नहीं हुई है। मई में तंजानिया के राष्ट्रपति जॉन मागुफुली ने खुद बताया कि वहां बकरी, भेड़ और पपीते के स्वैब का नमूना जांच के लिए भेजा गया और ये भी कोरोना पॉजिटिव निकले। इसके बाद उन्होंने चीन से आई जांच किट्स से जांच कराने पर रोक लगा दी। पांच करोड़ 63 लाख की आबादी वाले तंजानिया में अभी तक कुल 509 संक्रमित मिले हैं और 21 लोगों की मौत हुई है।
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